For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुस्तक : चाक पर घुमती रही मिट्टी (ग़ज़ल संग्रह)

रचनाकार : आराधना प्रसाद

प्रकाशक : ग्रथ अकादमी, 19, पहली मंज़िल,

2, अंसारी रोड,दरियागंज, नई दिल्ली-02

मूल्य : 250/- मात्र.

पृष्ठ संख्या : 128

 

                   पहले रचनाकार आराधना प्रसाद का परिचय करा दूँ। यह विज्ञान विषय से स्नातकोत्तर हैं। इनके पच्चीस से अधिक साझा ग़ज़ल-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं। इन्हें बिहार उर्दू एकेडमी द्वारा एक से अधिक बार पुरस्कृत किया जा चुका है।

                   ‘चाक पर घुमती रही मिट्टी’ ग़ज़ल संग्रह का प्राक्कथन सम्माननीय द्विजेन्द्र द्विज साहब ने लिखा है।

         “ग़ज़ल कहनी है अब उस आसमां से

जहाँ सब ख़त्म करते हैं वहाँ से”

                   इस शेर के हवाले से द्विज साहब कहते हैं पाठक आश्वस्त रहे, वह इस खूबसूरत संकलन की ग़ज़लों को पढ़ते हुए अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति के एकदम अलग और नये पडावों से गुज़रने जा रहा है।

                   प्राक्कथन का दूसरा भाग ही समझूँ क्योंकि यहाँ शीर्ष पर मात्र ‘2’ लिखा है। इसके अन्तर्गत ग़ज़ल क्षेत्र सुप्रसिद्ध एवं सम्माननीय विजय कुमार स्वर्णकार कहते हैं “लगता है कि ग़ज़ल में अभिव्यक्ति के नये प्रतिमान स्थापित होंगे। पिछले एक दशक में जिन महत्वपूर्ण ग़ज़लकारों ने उल्लेखनीय सृजन किया है, उनमें आराधना प्रसाद अग्रणी हैं।” उन्होंने रदीफ़ चयन को चुनौतीपूर्ण मानते हुए ग़ज़लों में प्रयुक्त रदीफ़ ‘धूप, बारिश, कोहरा, ख़ुशबू,मिट्टी, तितली, मछली’ के लिए शाइरः की इस प्रयोगधर्मिता की तारीफ़ करते हुए उनके साहस की तारीफ़ भी की है।

ऐसा क्या है तुम्हारी आखों में

तुमको  ढूँढें  गली-गली   आँखें

 

                   और प्राक्कथन के ही तीसरे भाग में जनाब संजय कुमार कुंदन साहब, जनाब द्विजेन्द्र द्विज साहब एवं जनाब विजय कुमार स्वर्णकार साहब की बात को ही आगे बढ़ाते हुए ग़ज़लकारा को एक तजरबेकार गुलूकारा तो बताते ही हैं साथ ही कहते हैं “तहत में पढ़ते हुए भी सामयीन के ज़हनो-दिल से उतनी ही आसानी से राब्ता क़ायम कर लेती हैं।” उन्होंने आगे कहा है कि “आराधना प्रसाद की ग़ज़लें सतही इज़हार से बचती और इशारों में बात करती नज़र आती हैं। जैसे -

मेरी वहशतज़दा निगाहों को

ख़ूबसूरत बहुत लगी तितली”

 

ग़ज़ल के इन सभी जानकारों के इतना कहने के कारण यह संग्रह पढ़ने के लिए मैं आतुर हो उठा, प्रत्येक ग़ज़ल पढ़ने के पश्चात मुझे ऐसा लगा अगली ग़ज़ल अब क्या पहली से बेहतर होगी किन्तु मैं गलत साबित होता गया और अंतिम ग़ज़ल तक सभी ग़ज़लें एक से बढ़कर एक पढ़ने मिलीं।

आसान से लगने वाले अशआर के अर्थ निकालो तो समझ आता है कि क्या गहराई है हर शेर की।

कैसे चुप रह सकेंगी दीवारें

नींव को जब हिला दिया हमने

                   एक नींव का बिम्ब लेकर कितनी  गहरी बात कही है शाइरः ने।

 

बहुत बेज़ार हूँ इस ज़िन्दगी से

सुनहरा ख़्वाब वो दिखला गया है

                   आसान सा दिखने वाला शेर जब इसमें कही बात पर गौर करें तो हम पाते हैं। हाँ, यही तो हो रहा है। कैसे चैन से जीने वालों को व्यर्थ के सब्ज़बाग़ दिखा कर उनकी ज़िन्दगी में व्यर्थ की हलचल पैदा की जा रही है । तमाम ऐसे अशआर हैं। मुझे लगता है कि बाकी पुस्तक पढ़कर ही समझें तो बेहतर है।

                   ब्लर्ब पर वरिष्ठ सम्पादक और पूर्व सांसद आर. के. सिन्हा जी ने भी कहा है “आराधना प्रसाद की गजलों में भाषा की सरलता के साथ-साथ शिल्प व् कथ्य  का स्तर उत्कृष्ट है।”

‘चाक पर घुमती रही मिट्टी’ ग़ज़ल-संग्रह  में एक और विशेष बात देखने मिली है

कि शाइरः ने अपने संग्रह के विषय में या ये कहूँ किसी भी विषय में कुछ नहीं कहा है। अक्सर रचनाकार आत्मकथ्य या अपनी बात के अन्तर्गत अपनी रचनाओं से सम्बन्धित कुछ ऐसी जानकारियाँ भी साझा करते हैं, जिन्हें पाठक वर्ग जानना चाहता है । मुझे आशा है अपने अगले संग्रह में आराधना प्रसाद जी अवश्य ही इन बातों का ध्यान रखेंगी।

                   मैं उनके इस ग़ज़ल संग्रह ‘चाक पर घूमती रही मिट्टी’ की सफलता के लिए हृदय से शुभकामनाएँ देता हूँ।

         

~ अशोक कुमार रक्ताले

उज्जैन.

Views: 279

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
6 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
13 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
20 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service