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Ashok Kumar Raktale's Discussions (6,391)

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"उड़ जाता है हंस खुशी से भवसागर के पारथमती साँसों को मिलती है जब गंगाजल छाँव।11।......…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"दोहे   अपनेपन की घट रही, गली-गली नित छाँव | बहुत भुरभुरे हो गए , अब रिश्तों के गाँव…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी सादर, प्रदत्त विषय पर सभी दोहे सुंदर और सार्थक हुए हैं. ब…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"छाँव नहीं हैं बढ़ रही भीड़ है पेड़ लगाओ ।.....जरूरी है.  आदरणीया कल्पना भट्ट जी सादर, प…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, प्रदत्त विषय पर तीनों ही छंद उत्तम और सार्थक रचे हैं…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"भाग्यशाली वे बड़े जिन पर किसी की छाँव है, मुख में दे कोई निवाला पालने में पाँव है। पू…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"आदरणीया कल्पना भट्ट जी सादर, छाँव का बिम्ब लेकर मानव समाज को सन्देश देने का प्रयास क…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"आदरणीय समर कबीर साहब सादर, बहुत त्वरित आपने यह सुंदर बदलाव कर दिया है. आपका हृदयातल…"

Ashok Kumar Raktale replied May 13, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ मिश्रा जी सादर, प्रदत्त विषय पर बहुत सुंदर रचना हुई है. बहुत-ब…"

Ashok Kumar Raktale replied May 12, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

"छत्र छाया से महरूम शैशव भटका युवा...........वाह ! बहुत खूब. आदरणीया मनीषा सक्सेना ज…"

Ashok Kumar Raktale replied May 12, 2017 to "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-79

483 May 13, 2017
Reply by मिथिलेश वामनकर

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दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
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मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
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