For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा....अर्धांगिनी

डोरबैल पे उंगली रखते ही दरवाज़ा खुल गया।जैसे बंद दरवाज़े के पीछे खड़ी वसुधा बेसब्री से इसी पल का इंतज़ार कर रही थी । लपक कर पति के हाथ से उसने ब्रीफकेस ले लिया।जब तक उमेश ने कपड़े बदले वसुधा ने चाय के साथ गरम नाश्ता लगा दिया।

" पकौड़े…",चाय की टेबल पर बैठते ही उमेश की त्योरी चढ़ गई...उसने आँखें तरेरीं और वसुधा सूखे पत्ते सी काँप गई,
"तुम्हें कुछ और बनाना नहीं आता जो रोज़ रोज़ पकौड़े बना देती हो",क्रोध मे उसने पकौड़ों से भरी प्लेट ज़ोर से वसुधा की तरफ फेंकी पर उसका निशाना चूक गया।प्लेट सीधा दीवार से टकरा कर ज़मीन पर गिरते ही टुकड़ों मे बिखर गई।
"गंवार कहीं की…",मेज़ पर चाय वैसे ही छोड़ वो बाहर निकल गया।ये रोज़ का नियम था….पत्नी से सीधे मुँह बात करना उसकी मर्दानगी के ख़िलाफ़ था।कभी उसका बनाया खाना उसी के मुँह पर मारना.. बात बात मे गाली..थप्पड़ उसकी आदत मे शुमार था।विवाह के एक माह बाद से ही वसुधा ये सब सहन कर रही थी।दोनों बच्चे भी पापा के क्रोध से भय खाते थे।
उमेश अभी बाहर के दरवाज़े तक ही पँहुचा था कि अचानक न जाने कहाँ से एक लम्बा चौड़ा शख्स उसके पास आ गया।
"कौन हो तुम … क्या चाहिए",उसकी सूरत आम आदमियों से कुछ अलग लगी तो वो घबरा सा गया।
पर जबाब मे उसने ने उमेश का हाथ पकड़ा और घसीटने लगा।
'किडनैप…',उसके मस्तिष्क मे एक शब्द उभरा और उसने तेज़ चिल्ला कर वसुधा को आवाज़ दी...पर ताज्जुब था कि कुछ ही दूर पर खड़ी वसुधा ने पहली बार उसकी आवाज़ नहीं सुनी।वरना तो उसकी हल्की सी आहट पे भी वह दौड़ती चली आती थी।
"अब तुम्हारी आवाज़ कोई नहीं सुन पाएगा क्योंकि कि तुम मर चुके हो...मै यमदूत हूँ तुम्हें यमलोक ले जाने आया हूँ",उस शख़्स ने हँस कर कहा।
"ये कैसे हो सकता है…उसने अपने शरीर पर हाथ फेरा... पर ये क्या... उसका हाथ तो आरपार हो गया?"
पर जब तक वो कुछ समझ पाता वो एक भव्य भवन के भीतर था।सामने रत्न जड़ित सिंहासन पर एक विशालकाय काया विराजमान थी।
"अब यमराज तुम्हारा फैसला करेंगे",यमदूत उसे वहीं छोड़ कर गायब हो गया।
"नाम उमेश ..उम्र पैंतालीस...विवाहित..",.यमराज अब उस की तरफ मुख़ातिब थे।
"मुझे घर जाना है",वो गिड़गिड़ाया..
"ठीक है...तुम्हें वापस जाना ही होगा… पर एक नये शरीर मे।और तुम्हारे रिकार्ड के अनुसार तुमने अपने आधे अंग के साथ सख़्त नाइंसाफी की है इसलिए दुबारा ज़मीन पर भेजने से पहले तुम्हारा आधा अंग काट दिया जाएगा",
"पर..मैंने तो..पूरे शरीर का ख़्याल किया… ये कैसे हो सकता है कि मैं दायें मुँह को खिलाऊँ और बाएँ को नहीं",उसने हकलाते हुए कहा तो यमराज मुस्कुरा दिये,
"विवाहित हो कर ये भी नहीं जानते कि पुरुष का आधा अंग कौन सा होता है"?
'ओह...अर्धांगिनी..'उसके मस्तिष्क मे बिजली की गति से कौंधा… हाँ..आखिरी फ़ेरे के बाद पत्नी को उसके बायीं तरफ बिठाते हुए पंडित जी ने यही तो कहा था 'आज से ये तुम्हारा बायाँ अंग है...अर्थात आधा अंग... तुम्हारी अर्धांगिनी है'
"तुमने उसके साथ बहुत बुरा सुलूक किया है...जानवरों जैसा वर्ताव… इसलिए धरती पर तुम्हें आधा अंग विहीन करके  पैदा किया जाएगा….ये फैसला जल्लाद करेगा कि तुम्हारे पापों के मुताबिक तुम्हारा कौन सा अंग काटा जाए",यमराज ने फैसला सुना दिया।एक क्षण को उसकी आँखों के सामने अब तक देखे सारे अपाहिजों की फौज गश्त करती चली गई।
तुरंत ही जल्लाद भी गढांसा ले कर तैयार था।डर के मारे उसकी घिग्घी बंध गई।जैसे ही जल्लाद ने गंडासा ऊपर उठाया वो पूरी तेज़ी से आँखें मीच के चिल्लाया,"नहीं..मुझे छोड़ दो...",पर गंडासा उसके शरीर के किसी भी अंग पर पड़ता उससे पहले ही किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया ।डरते डरते उसने आँखें खोलीं... ना जल्लाद था और न ही यमलोक ...वो अपने घर मे था।सामने बसुधा थी...उसका हाथ पकड़े... उसने अपने चिकोटी काटी...वो ज़िन्दा था…और ड्राइंगरुम के सोफ़े पर लेटा हुआ पर पूरा शरीर पसीने से लथपथ।उसने अपने हाथ पैर टटोले सब सही सलामत थे।'तो ये सपना था… उफ!कितना भयानक… कहीं ये सच हो जाता तो…',उसका पूरा शरीर फिर एक बार काँप उठा।उसे याद आया आफिस से आकर वो बिना कपड़े बदले ही सोफे पर लेट गया था… और तभी शायद उसकी आँख लग गयी।
उसने फिर बसुधा पर नज़र डाली...डरके बसुधा ने तेज़ी से उसका हाथ छोड़ दिया पर इस बार उसने पत्नी का हाथ ख़ुद कस के पकड़ लिया…"वसु...मैं भूल गया था कि तुम मेरी अर्धांगिनी हो मेरा अपना आधा अंग...मैंने तुम पर बहुत अत्याचार किया ...पर क्या तुम मुझे माफ़ कर दोगी?" पति के व्यवहार मे अचानक आए इस अभूतपूर्व बदलाव से वसुधा स्तब्ध रह गई पर कुछ न समझने के बावजूद अरसे बाद पति की आँखों मे पाश्चाताप की नमी के साथ असीमित प्यार और कोमल स्वर उसे कहीं भीतर तक भिगो गये। आँखों मे खुशी के आँसू भर गए।उसके लब खामोश थे पर उस मौन मे भी उसका दूसरा हाथ पति के हाथ के ऊपर आकर अपनी मंज़ूरी की मुहर लगा रहा था।
मंजू सक्सेना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 579

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on December 4, 2019 at 6:39pm

आदरणीया मंजू जी, लघुकथा का अच्छा प्रयास है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। अनावश्यक विस्तार की तरफ़ आदरणीय समर कबीर सर ने इशारा कर ही दिया है। उनकी बात का संज्ञान लें। मंच से जुड़ी रहेंगी तो निश्चित ही आपको मंच से और हम सबको आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। शुभकामनाएँ। सादर।

Comment by Samar kabeer on November 28, 2019 at 12:19pm

मुहतरमा मंजू सक्सेना जी आदाब,ओबीओ पर आपका हार्दिक ज़्घुवागत है ।लघुकथा का प्रयास अच्छा है,लेकिन बहुत ज़ियादा विस्तार इसे कमज़ोर कर रहा है,ओबीओ पर लघुकथा के सम्बंध में आलेख मौजूद हैं,कृपया उस का लाभ लें,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service