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अब तुम नहीं हो इस दुनिया में-------

बेहद तेजी से प्रोफेशनल तरक्‍की
के रास्‍ते पर हो दोस्त,
बुन ली है तुमने अपने
आस पास एक ऐसी दुनिया,
जिसमें ना प्रवेश कर सकते  हैं  हम
और ना ही तुम आ सकते हो हम तक !
नहीं बची  है दूसरों के लिए करुणा,
प्रेम, स्‍नेह और आत्‍मीयता की कोई जगह,
तुम्हारी इस दुनिया में !
हंसना, मुस्‍कुराना तो कभी का
हो चुका था बंद,जब भी मिले,मिले तुम
लिए चेहरे पर प्‍लास्टिक सी  मुस्‍कान,
भीतर ही भीतर मान लिया तुमने,
स्वयं को  सर्वश्रेष्‍ठ,
बना ली  अपने आस पास एक ऐसी दीवार,
जिसमें दरवाजा तो दूर कोई ‘खिड़की’ तक न थी !
घर के बाहर इकट्ठे होते अखबारों,
और दूध के पैकेट ने बताया कि ;
‘अब तुम नहीं हो इस दुनिया में’ !

"मौलिक व अप्रकाशित"

   

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Comment by Naval Kishor Soni on August 23, 2018 at 3:12pm

 शुक्रिया आदरणीय Samar kabeer जी ! 

Comment by Samar kabeer on August 23, 2018 at 2:52pm

जनाब नवल किशोर सोनी जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Naval Kishor Soni on August 23, 2018 at 12:00pm

शुक्रिया आदरणीय  santosh khirwadkar जी !

Comment by santosh khirwadkar on August 23, 2018 at 11:37am

वाह्ह्ह क्या शाश्वत अभिव्यक्ति है ......प्लास्टिक की मुस्कान..बहुत ख़ूब!!

Comment by Naval Kishor Soni on August 23, 2018 at 10:29am

जनाब मोहम्मद आरिफ जी हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रिया !

Comment by Mohammed Arif on August 22, 2018 at 8:58pm

आदरणीय नवलकिशोर जी आदाब,

                        भावना की तीव्र अभिव्यक्ति । तरक़्की के इस दौर में हम अपनों से बहुत दूर जा रहे हैं । जो अपने हैं उन्हें भी तरजीह नहीं देते हैं । संवेदनहीनता का सैलाब सबको डुबो रहा है । हार्दिक बधाई ।

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