विकास के नाम पर
 व्यापार के दाम पर,
 धनाढ्य, नेता, मंत्री,
 बाबाजी सब काम पर!
 इंसानियत होम कर,
 अनुलोम-विलोम सा
 हेर-फेर कर!
 बच्चों, नारी,
 ग़रीब, किसान
 घेर कर!
 पड़ोसियों से बैर कर,
 रिश्ते-नातों को
 तजकर, बेच कर!
 या रिश्तों के नाम
 जाम, दाम, नाम
 लगाकर, 
 दूर के आभासी
 अनजाने से
 रिश्ते थाम कर,
 मर्यादाओं को लांघ कर,
 मानव-अंग उघाड़ कर,
 येन-केन-प्रकारेण
 अंग-निर्वस्त्रीकरण कर,
 निज-स्वतंत्रता, अधिकार,
 सशक्तिकरण के नाम पर!
विज्ञान-तकनीक की
 तरक़्क़ी के नाम पर,
 ज़मीं-आसमान लांघकर,
 ईमान ही दाम पर
 मान-सम्मान मांग कर!
 धोंस-दपट,
 संधि-समझौते-करार कर
 वैश्वीकरण के नाम पर!
 निर्धन- मोहताज़ को
 हैरान-बेकरार कर,
 विकास पर गर्व कर,
 समाज-पर्यावरण,
 विश्व-बंधुत्व,
 वसुधैव-कुटुम्बकम तज
 मानवता बिगाड़ कर
नाम के काम, नाम से काम
 विकास के नाम पर !
 (मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
इस हौसला अफज़ाई के.लिए हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहिब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, अच्छी अतुकान्त कविता है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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