For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपनत्व की खुशबु (लघुकथा )

शहर के बड़े शिवपुरी में उस कि अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, इस शिवपुरी में मैं कई बार अंतिम संस्कारों में शामिल हो चूका था| मगर जिस तरह का हजूम आज राजेंद्र मास्टर के साथ आया था, ऐसा मैंने कभी नहीं देखा था| सभी आंखें नम थी और इधर उधर चारों तरफ चीकें सुनाई दे रही थी किसी को उसके इस तरह जाने पे यकीन नहीं हो रहा था| 
कोई ये कह रहा था, “क्या ऐसा भी हो सकता है, मगर दुर्घटना कब, कहाँ हो जाए कहाँ पता चलता है इसके बारे कोई कुछ नहीं कह सकता”|
“मगर बचातो जा सकता है, इसके लिए प्रबंध तो किये जा सकते हैं, यही सवाल खुद से कर रहा था”|
क्या आई मौत कि हरेक के लिए अपने ही मायने होते हैं, मैंने फिर खुद से सवाल किया ?
ऐसा उस के साथ ही हुआ क्यूँ, मगर क्यूँ हुआ ये कोई नहीं सोचता|
सोचा कब था ऐसा होगा, मगर हो गया|
यहाँ एक तरफ दुर्घटना का होना और ऊपर से पुलिस का वतीरा और भी नाराज़ कर गया था लोगों को, मगर भीड़ फिर भी चुपचाप वहाँ खड़ी, ये सब कुछ देखती रही|
पास से आवाज़ आई, “जब अब इस जहाँ में कोई एक दूसरे को पहचानता तक नहीं, कहते हैं लहू सफेद हो गया है, तब ये हजूम मुझे अचंभे में डाल रहा था|
कैसे कोई लोगों की जिन्दगी का हिस्सा बन कर जीता है, इस दुनिया में उसके मुस्कराते चेहरे की यादें खुशबु की तरह फैल गई लगती थी|
लाश को आग दी जा चुकी थी और लोग धीरे धीरे शिवपुरी से बाहर की तरफ आने लगे|
काश! यही अपनत्व की खुशबु दुनिया में फैल जाए, ऐसा सोचते हुए मैं भी शिवपुरी से भीड़ के साथ ही बाहर सड़क पर आ गया|
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 13, 2018 at 9:33pm

जनाब डॉ.मोहन बेगोवाल साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by babitagupta on May 13, 2018 at 8:05pm

बहुत ही सुन्दर मन के भावों से मनुष्य के जीवन की विडंबना का उउल्लेख कर वास्तविकता को प्रस्तुत किया है, बधाई स्वीकार कीजिए प्ररकाशित रचना के लिए।

Comment by Nita Kasar on May 13, 2018 at 5:47pm

जिंदगी की विडंबना है लोग उस समय साथ देने आगे नही आते जब कोई व्यक्ति जीवन की जद्दोजहद से घिरा होता है ।दार्शनिक अंदाज में लिखी गई कथा के लिये बधाई आद० मोहन बेगोवाल जी ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 13, 2018 at 12:20am

..//.. कहते हैं लहू सफेद हो गया है, तब ये हजूम मुझे अचंभे में डाल रहा था|/ आकस्मिक दुर्घटना/मौत पर आकस्मिक भीड़ अचंभित ही करती है और दहशत भी पैदा कर सकती है।  बहुत बढ़िया मुद्दे उभारती बढ़िया रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहन बेगोवाल साहिब। लघुकथा संदर्भ में स्थान नाम आवश्यक नहीं है। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service