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हिन्दी ग़ज़ल...जब सूर्य चले अस्ताचल को

22 22 22 22
जब सूर्य चले अस्ताचल को
गहराय तिमिर घेरे तल को

इक दीप जलाओ अंतस में
जगमग कर दो भूमण्डल को

आवाज बनो तुम गूंगों की
तूफान बना दो हलचल को

जब चलना है, तो साथ चलें
पग से नापें नभ जल थल को

दुःख दुनिया का पी लेंगें 'ब्रज'
रक्खो तैयार हलाहल को
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 13, 2017 at 10:15pm
स्वागत है आदरणीया शिखा जी
Comment by shikha kaushik on May 13, 2017 at 12:09pm
सुंदर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 12, 2017 at 4:40pm
आदरणीय अनुराग जी सादर अभिवादन स्वीकार करें..जी आदरणीय मैंने भी यही पाया है कि हिंदी ग़ज़ल के लिए ये सर्वाधिक उपयुक्त मापनी है..आपने जो दो युग्मों को जोड़ा वो संगम बहुत ही खूबसूरत लग रहा है..मैं प्रयास करूँगा कि सम्पूर्ण ग़ज़ल को ये रूप प्रदान कर सकूँ..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 11, 2017 at 9:23pm
बहुत बहुत आभार आदरणीय शुक्ला जी..सादर
Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 6:09pm

वाह वाह आदरणीय बृजेश जी बहुत बढि़या गजल कही है । बधाई

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 10, 2017 at 12:36pm
नमन संग आभार आदरणीय गिरिराज जी आपकी सलाह अनुसार सुधार किया है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 10, 2017 at 12:33pm
आदरणीय हेमंत जी हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 10, 2017 at 12:28pm
आदरणीय डा.आशुतोष जी हौसलाफजाई के लिये आपका हार्दिक आभार..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:31am

आदरनीय -

// इस बहर में 21 12 को 222 पढ़ा जा सकता है //   ये सही है मेरी  जानकारी से भी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:29am

आदरनीय बृजेश भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ प्रेषित हैं ... स्वीकार करें ।
आखिरी शे र में --

चाहें तो गम को दुख  कर सकते हैं

कृपया ध्यान दे...

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