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1222 -1222-1222-1222

उन्हें ढूंढे मेरी ऑंखें बनी बीमार बरसों से
निकलता ही नहीं दिल से मेरा दिलदार बरसों से

नहीं काबू रहा ये दिल, तेरी उल्फ़त का जादू है 
धड़कता है मचल कर ये मेरी सरकार बरसों से

किया है वायदा उसने कि अच्छे दिन मैं लाऊंगा
तभी विश्वास से जनता है बैठी यार बरसों से

नहीं झुकना नहीं गिरना कसम तुमको है भारत की
हिमालय आज है मांगे दिया जो प्यार बरसों से

वही धोखा है फितरत में कि तौबाजिस से की उसने
जली आशा न फिर पनपी हुई तैयार बरसों से


मुनीश 'तन्हा'..नादौन..9882892447
मौलिक एवं अप्रकाशित...

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 10:19pm

आदरणीय मुनीश  जी  बढ़िया ग़ज़ल कही है. हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि ग़ज़ल को थोड़ा समय मिल जाता तो और निखरकर आती. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 25, 2016 at 6:51pm

आदरणीय मुनीश भाई , बढिया गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:46pm

आदरणीय मुनीश जी गजल के प्रयास के लिये बधाई स्‍वीकार करें । 

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