For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

त्रिपदिक मुक्तिका (अनुगीत) : सत-शिव-सुन्दर सृजन कर ---संजीव 'सलिल'

त्रिपदिक मुक्तिका (अनुगीत) :

सत-शिव-सुन्दर सृजन कर

संजीव 'सलिल'

*
*

सत-शिव-सुन्दर सृजन कर,

नयन मूँद कर भजन कर-

आज न कल, मन जनम भर.



कौन यहाँ अक्षर-अजर?

कौन कभी होता अमर?

कोई नहीं, तो क्यों समर?


किन्तु परन्तु अगर-मगर,

लेकिन यदि- संकल्प कर

भुला चला चल डगर पर.


तुझ पर किसका क्या असर?

तेरी किस पर क्यों नज़र?

अलग-अलग जब रहगुज़र.


किसकी नहीं यहाँ गुजर?

कौन न कर पाता बसर?

वह! लेता सबकी खबर.


अपनी-अपनी है डगर.

एक न दूजे सा बशर.

छोड़ न कोशिश में कसर.


बात न करना तू लचर.

पाना है मंजिल अगर.

आस न तजना उम्र भर.


प्रति पल बन-मिटती लहर.

ज्यों का त्यों रहता गव्हर.

देख कि किसका क्या असर?


कहे सुने बिन हो सहर.

तनिक न टलता है प्रहर.

फ़िक्र न कर खुद हो कहर.


शब्दाक्षर का रच शहर.

बहे भाव की नित नहर.

ग़ज़ल न कहना बिन बहर.


'सलिल' समय की सुन बजर.

साथ अमन के है ग़दर.

तनिक न हो विचलित शजर.


***********************************************

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम /सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

Views: 541

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 14, 2010 at 11:08pm
//शब्दाक्षर का रच शहर.
बहे भाव की नित नहर.
ग़ज़ल न कहना बिन बहर.//

इतनी बड़ी बात कह दी आपने कि नि:शब्द हो गया हूँ आचार्य जी! बस अपना आशीर्वाद बनाये रखें !

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 14, 2010 at 10:04pm
acharya ji ke charnon main sadar pranam

Bahut sundar!!! hindi avam urdu ke shabdon ka sundar samayojan. acharya ji yadi yah spasht kar saken ki anugeet avam navgeet main kya fark hota hai to apka bahut abhari rahunga.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 14, 2010 at 9:12pm
अपनी-अपनी है डगर.
एक न दूजे सा बशर.
छोड़ न कोशिश में कसर.
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति और गहन अर्थ से भरी रचना, बहुत बहुत आभार आचार्य जी,
Comment by Kanchan Pandey on June 14, 2010 at 8:51pm
ees tarah ki rachna dekhna ek sukhad anubhav hai, OBO par ek aur vidawan kavi ka charan Vandan,
Comment by Admin on June 14, 2010 at 3:41pm
बात न करना तू लचर.
पाना है मंजिल अगर.
आस न तजना उम्र भर,

आचार्य जी बहुत ही शिक्षाप्रद है यह आपका त्रिपदिक मुक्तिका , इतना सुंदर प्रवाह है की शब्द नहीं है तारीफ के कुछ पदो पर तो अमल किया जाय तो जीवन मे कभी दुःख ही न हो, बहुत बहुत आभार है आपका,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service