For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अन्तर्मन (कहानी)

पेड़ के बगल ही खड़ी हो पेड़ से प्रगट हुई स्त्री ने पूछा , “अब बताओ इस रूप में ज्यादा काम की चीज और खूबसूरत हूँ या पेड़ रूप में |
पेड़ बोला , “खूबसूरत तो मैं तुम्हारे रूप में ही हूँ , पर मेरी खूबसूरती भी कम नहीं | काम का तो मैं तुमसे ज्यादा ही हूँ |”
” न ‘मैं’ हूँ |”
पेड़ ने कहा, ” न न ‘मैं’ ”
पेड़ ने धोंस देते हुए कहा , “मुझे देखते ही लोग सुस्ताने आ जाते हैं |जब कभी गर्मी से बेकल होते हैं |”
“मुझे भी तो |” रहस्यमयी हंसी हंसकर बोली स्त्री
“मुझसे तो छाया और सुख मिलता हैं आदमी को |”
“अरे मूर्ख मैं भी छाया और सुख प्रदान करती हूँ| आंचल से ज्यादा छाया और सुख कोई नही दे सकता |” अहंकार से भर इठला गयी स्त्री
“मुझ पर लगे फल लोग खा के तृप्त होते हैं |”
“हा हा हा हा” ठहाका जोर का मारकर बोली , “मुझसे भी तृप्त ही होते हैं |” कुछ शरमाई सी बोली
“मेरी पतली पतली शाखायें लोग काट आग के काम में लाते हैं |”
“मैं स्वयं एक आग हूँ बड़े बुजुर्ग यही कहते हैं |” रहस्यमयी मुस्कान बढ़ गयी थी
“मैं आक्सीजन प्रदान करता हूँ |”
“मैं खुद आक्सीजन हूँ ! जिन्दगी देती हूँ ! मेरे से प्यार करने वाला मेरे बगैर मर जाता हैं | तुमसे भी प्यार करने वाले करते तो हैं पर तुम्हारे न होने पर मरते नहीं हैं |” गर्वान्वित हो बोली स्त्री
“मैं उपवन को हरा-भरा रखता हूँ |”
“अरे महामूर्ख , मैं खुद उपवन ही हूँ ! मेरे बगैर इस धरती का सारा वैभव तुच्छ हैं |”

“मुझे लोग काट निर्जीव कर अपने घरों में सजाने के उपयोग में लें आते हैं |” थोड़ा दुखी हो वृक्ष बोला ” इससे अच्छा हैं मैं तुम्हारे इस स्त्री रूप में ही रहूँ | सच में तुम ज्यादा खूबसूरत और काम की हो | मैंने हार मान ली तुमसे |”

अहंकार खो सा गया यह सुनते ही | स्त्री बोली, “नहीं , नहीं वृक्ष मैं इस रूप में नहीं रह सकती | तुम्हारा निर्जीव रूप में ही सही शान से उपयोग तो लोग कर रहें पर मुझे तो ना जीने देते हैं न मरने | तुम्हे निर्जीव कर तुम्हारे ऊपर आरी चलाते हैं पर मुझ पर तो जीते जी |” दुखित हो स्त्री बोली
ठहरों मैं तुम में समा जाती हूँ फिर से | जादूगर ने कहा था न सूरज डूबने से पहले नहीं समाई तो मैं स्त्री ही बन रह जाऊँगी | हे वृक्षराज ,” मैं स्त्री नहीं वृक्ष रूप में ही ज्यादा सुरक्षित हूँ | और हर रूप में मानव को सुख देने में सक्षम रहूंगी इस वृक्ष रूप में | मानव स्त्री को तो नरक का द्वार कहकर घृणा भी करता हैं | तुम्हें यानि पीपल को पिता का रूप मान आदर देता हैं | मैं तुम्हारे रूप में ही रहकर सुकून पाऊँगी | मुझे अपने में समेट लो वृक्षराज |” विनती करती हुई सी बोली स्त्री |

दोनों ने जादूगर द्वारा दिए मन्त्र बोले और एक रूप हो गये | अँधेरा अपने यौवन रूप में प्रवेश कर चुका था |

सविता मिश्रा


...मेरी स्‍वरचित/मौलिक रचना हैं...

Views: 881

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on December 29, 2015 at 11:35am

निधि बहनअभ्यासअर

Comment by निधि जैन on December 28, 2015 at 6:31pm
जादूगर ने मन्त्र क्यू कैसे दिए इसका भी उल्लेख होता तो और भी बेहतर होती कथा
बहरहाल वार्तालाप बेहतरीन बन पड़ा
Comment by savitamishra on July 16, 2015 at 12:02pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी भैया आपने भी मोहर गला दी तो मन प्रसन्न हो गया ।लगा धुन में जोलिख गए अच्छी ही लिख गए होंगे ...दिल से आभार आपका सादर नमस्ते


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 5:22am

आदरणीया , अच्छी लगी आपकी कहानी , खास कर वृक्ष और स्त्री के बाईच का वार्तालाप । आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by savitamishra on July 15, 2015 at 11:16pm

दिल से आभार ज्योत्स्ना सखी इस हौसला आफ़जाई कइ लिये

Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 10:13pm
इतनी सुंदर,सार्थक और भावपूर्ण कथा के लिए हार्दिक बधाई आ. सविता मिश्रा जी।बहुत अद्भुत कथा बनी है ये।
Comment by savitamishra on July 15, 2015 at 8:39pm

बधाईया क ता इन्तजार ही में बैठी हई कांता दी.....सादर नमस्ते.......हमऊ जौन आभार  व्यक्त करत हई ग्रहण करा .और आपन स्नेह यूँही बनाये रहूँ

Comment by savitamishra on July 15, 2015 at 8:29pm

राजेश दी सादर नमस्ते...दिल से आभार.....हमें लगा हमारी फितुरगिरि किसी को पसन्द नहीं आई....आपको भाई आभार दी सादर

Comment by kanta roy on July 15, 2015 at 12:02pm
सुंदर कहानी लिखने का सफल प्रयास हुआ है आदरणीया सविता बहिनी जी । बधाईवा तो लेबैये परत ना जी । बहुत ही उम्दा सोच

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 10:10am

बिम्बात्मक भाषा में नारी वेदना को बहुत ही अनोखे अंदाज में चित्रित किया आपकी ये कहानी लीक से हटकर कुछ खास लगी मुझे तो बहुत पसंद आई ...वृक्ष और स्त्री का वार्तालाप ...क्या कहने अद्द्भुत बहुत- बहुत बधाई सविता जी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
2 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service