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सर्वश्रेष्ठ कविता : लघुकथा –हरि प्रकाश दुबे

“ कवि सम्मलेन का भव्य आयोजन हो रहा था, सभागार श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था , देश के कई बड़े कवि मंच पर उपस्तिथ थे, मंच संचालक महोदय बार –बार निवेदन कर रहे थे की अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना का पाठ करें, इसी श्रृंखला में उन्होंने कहा, अब मैं आमंत्रित करता हूँ, आप के ही शहर से आये हुए श्रधेय कवि विद्यालंकार जी का, तालियों से सभागार गूँज उठा !”

“तभी मंच संचालक महोदय ने उनके कान में कहा ‘सर कृपया १५ मिनट से ज्यादा समय मत लीजियेगा’ !”

“विद्यालंकार जी ने मंच पर आसीन कवियों एवम् श्रोताओं से कहा, आप सभी को सादर प्रणाम, अब मैं अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, पर आप सभी से निवेदन है की कोई ताली नहीं बजाएगा ,ना ही कोई वाह-वाह करेगा, कृपया अपनी –अपनी आँखें बंद कर लें और कविता का आनंद लें !”

“ सभी ने अपनी आंखें बंद कर लीं, मौन छा गया, ठीक १५ मिनट तक मौन , फिर आवाज आयी, आशा है आपको कविता पसंद आई होगी ,थोडा जल्दी में हूँ ,आप सभी का आभार और इस तरह विद्यालंकार जी बिना कुछ कहे ही चल दिए  !”

“सभा में सन्नाटा था, हर एक का मस्तिष्क सर्वश्रेष्ठ कविता का निष्कर्ष निकालने में जुटा हुआ था !”

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित” 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 1:08pm

आदरणीय हरि भाई , बढिया लगी आपकी कघुकथा , आपहो बधाई रचना के लिये ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:49pm

आदरणीय हरिप्रकाश भाई यह लघुकथा मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ .... सादर 

कृपया ध्यान दे...

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