For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उफ़ गर्मी बहुत है रे ....

उफ़ गर्मी बहुत है रे
पैसे कौड़ी रह रह दिखाए
पास खड़ी खूब इतराए
महंगी से महंगी साड़ी पहने
गले में हीरो के लादे गहने
उफ़ गर्मी बहुत है रे ....

मंहगे पार्लर में जा के आये
कृतिम सुन्दरता पर भी इतराए
बालों की सफेदी मंहगे कलर से छुपाये
पैडी-मैनी क्योर न जाने क्या क्या करवाए
दात भी डाक्टर से चमकवाये
अपनी हर कुरूपता छुपाये
उफ़ गर्मी बहुत है रे.....

पति की नौकरी पर इठलाये
रह रह बड़ा अफसर बतलाये
भले पति देता न हो रत्ती भर भाव
कहती जमीं पर रखने नहीं देता पाँव
कहती फिरे फूलों की सेज पर सोये
पति करता खूब प्यार मुनादी करवाए
अपने प्रेम की झूठी तस्वीरें दिखलाये
उफ़ गर्मी बहुत है रे.....

बच्चो की बडाई करते नहीं अघाए
रह रह उनकी कमायाबी बतलाये
फेल हुए को भी पास दिखाए
उनकी नौकरी पर भी इतराए
असंस्कारी को संस्कारी जतलाये
अच्छी खासी आई शादी भी ठुकराए
उफ़ गर्मी बहुत है रे .....

जताती सास ससुर की करती सेवा
पर चुप्पे-चुप्पे खाती रहती मेवा
सुखी रोटी परोस कहती ला जेवा
पति सामने हो तो मुस्काती रहे
पीठ पीछे सास ससुर को आँख दिखाए
बुजुर्ग त्रिया चरित्र इसी को कह गये
उफ़ गर्मी बहुत है रे.....सविता मिश्रा

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 851

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on June 26, 2014 at 7:54pm

shukriya आपका ......कलात्मकता की कमी है कई लोग कहते है पार क्या करे ये कलात्मकता आती ही नहीं भावो में घुल


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 26, 2014 at 3:13pm

दिखावे की ज़िंदगी जीती स्त्रियों के आचरण को प्रस्तुत करने का बिन्दुवत प्रयास हुआ है... लेकिन रचना प्रस्तुतीकरण के क्रम में कथ्य और चिंतन की कलात्मकता भी समाहित हो तो आनंद बहुगुणा हो जाता है...ऐसा भी प्रयास रहना चाहिए 

इस व्यंग पर बधाई स्वीकारिये 

Comment by savitamishra on June 22, 2014 at 9:19pm
बहुत बहुत आभार आपका दिल से
Comment by Meena Pathak on June 22, 2014 at 9:40am

सुन्दर ...व्यंग्यात्मकरचना  बधाई 

Comment by savitamishra on June 21, 2014 at 11:19pm

बहुत बहुत शुक्रिया ...नमन


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 21, 2014 at 11:10am

आदरणीया , सुन्दर व्यंग्य  रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by savitamishra on June 20, 2014 at 9:04pm

shukriya aapka dil se

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 20, 2014 at 3:16pm

सच में आपने गर्मी का अहसास शब्दों के माध्यम से करा ही दिया ..उफ़ गर्मी बहुत है रे....

Comment by savitamishra on June 19, 2014 at 11:34pm

शुक्रिया कल्पना दीदी ...सादर नमस्ते

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:36pm

आदरणीया सविता जी, सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
16 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service