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हिन्दी श्लोक (अनुष्‍टुप छंद)

अनुष्‍टुप छंद 4 चरण प्रत्येक चरण 8-8 वर्ण
विषम चरण - वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ क्रमशः लघु, गुरू, गुरू, गुरू
सम  चरण -  वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ  क्रमशः लघु, गुरू, लघु, गुरू

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मदिरापान कैसा है, इस देश समाज में ।
अमरबेल सा मानो, फैला जो हर साख में ।।

पीने के सौ बहाने हैं, खुशी व गम साथ में ।
जड़ है नाश का दारू, रखे है तथ्य ताक में ।।

कुत्ता वह गली का हो, किसी को देख भौकता ।
उनके पास होते जो, उन्ही को देख नोचता ।।

इंसान था भला कैसे, पागल वह हो गया ।
लाभ हानि तजे कैसे, दारू में वह खो गया ।।

किया जो पान दैत्यों सा, मृत्यु को ही पुकारता ।
करे दुष्कर्म जो सारे, वंश को ही उखाड़ता ।।

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मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)

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Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:52am

अनुष्टुप छंद पर प्रयास करने के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय रमेशजी.

सादर

Comment by रमेश कुमार चौहान on March 30, 2014 at 4:27pm

आदरणीय शर्माजी एवं लडीवालाजी आप दोनो को इस प्रयास को सराहने के लिये हार्दिक आभार

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2014 at 4:21pm

सुन्दर और सार्थक भाव रचना ! सार्थक सन्देश ! हार्दिक बधाई श्री रमेश चौहान जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 28, 2014 at 11:05am

आदरणीय रमेश जी बहुत सुन्दर छंद रचा है आपने निःसंदेह मदिरा एक ऐसा बुरी लत है जो हमारे समाज को दिन ब दिन गन्दा कर रही है युवाओं को गलत रास्ता दिखा रही है मदिरापान से उत्पन्न होनी वाली परिस्थिति का सुन्दर वर्णन मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

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