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कभी औरों से टकराते कभी खुद से खफा होते ।

न आते ज़िन्दगी में तुम तो मौसम ए खिजां होते ।

मोहब्बत की पनाहों में हुये हालात ऐसे हैं ,

न खामोशी से छुपते हैं न लफ़्ज़ों से बयाँ होते ।

दिले नादाँ को समझायें ज़रा सी बात कैसे हम ,

प्यार के हादसे अक्सर दिलों के दरमियाँ  होते ।

प्यार कहने की ख्वाहिश में सिमट जाता है अपना दिल,

खुदा तेरी तरह होते जो हम भी बेज़ुबाँ होते ।

खुदी का घर मिटाये बिन सुकूँ का दर नही मिलता ,

अगर ये इश्क ना होता कहाँ जाके फना होते ।

ये दरिया के किनारे हैं जो सदियों से मचलते हैं ,

मगर कुछ बात ऐसी है न मिलते ना ज़ुदा होते ।

मौलिक व अप्रकाशित

      नीरज

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Comment

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Comment by वेदिका on November 12, 2013 at 2:51pm

ये दरिया के किनारे हैं जो सदियों से मचलते हैं ,

मगर कुछ बात ऐसी है न मिलते ना ज़ुदा होते ।

खूबसूरत गज़ल का खूबसूरत शेअर!

बधाई !!

Comment by Neeraj Nishchal on November 4, 2013 at 8:40pm

आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राजेश भाई

Comment by राजेश 'मृदु' on October 31, 2013 at 2:34pm

जय हो आदरणीय आपकी सदा जय हो, आनंद आ गया वो भी गले तक । बहुत बधाई इस प्रस्‍तुति पर, सादर

Comment by Neeraj Nishchal on October 30, 2013 at 7:23pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका बहुत बहुत आभार

Comment by Neeraj Nishchal on October 30, 2013 at 7:22pm

आदरणीय संदीप भाई बहुत बहुत अनुग्रहीत हूँ आपसे

Comment by Neeraj Nishchal on October 30, 2013 at 7:20pm

आदरणीय सुशील जोशी जी बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ आपका

Comment by Neeraj Nishchal on October 30, 2013 at 7:19pm

आदरणीय विजय जी तहे दिल से आभार करता हूँ

Comment by Neeraj Nishchal on October 30, 2013 at 7:18pm

आदरणीय पाठक जी बहुत बहुत आपका शुक्रिया

Comment by Neeraj Nishchal on October 30, 2013 at 7:17pm

आदरणीय जितेंद्र जी बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Neeraj Nishchal on October 30, 2013 at 7:16pm

आदरणीय गिरिराज भाई बहुत बहुत आभार आपका

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