For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी एक आरजू !-------------कविता

आरजू है माँ कि फिर लौट आऊँ तेरे आँचल की छाँव में !

उन बचपन की गलियों में , उस बचपन के गाँव में !

वो तेरी ममता के साए , वो रातो की लौरी !

वो गय्यियो का माखन , वो दूध की कटोरी !

वो बचपन के संगी साथी , वो गाँव के गलियारे !

लगते थे मुझको स्वर्ग से भी प्यारे !

वो राजा रानी के किस्से , परियो की कहानी !

याद है मुझको आज भी जबानी !

अमृत सा रस लिए वो तेरे हाथो का निवाला !

वो गर्मी का मौसम , वो सर्दी का पाला !

अपने सीने से चिपकाकर वो तेरा मुझको सुलाना !

खुद भूखी रहकर भी तेरा वो मुझको खिलाना !

वो आँखों में आंसू लिए तेरा मुस्कुराना !

याद आता है हर दिन वो मुझको पुराना !

वो सांझ का धुंधलका , वो भोर के उजाले !

वो बचपन के दिन थे माँ कितने निराले !!!!!!!!

 

 

मगर अब न जाने क्यों उलझ सा गया हूँ !

जिम्मेदारियों के बोझ से थक सा गया हूँ !

एक बार फिर अपने आँचल में सुलाले !

गम की धुप में मैं झुलस सा गया हूँ !

या खुद ही में मैं भटक सा गया हूँ !

कोई नही है माँ जो मुझे यूँ सम्हाले 

ना  जाने क्यों तुझसे दूर आ गया बैठ कर जिंदगी की नाव में 

 आरजू है माँ कि फिर लौट आऊँ तेरे आँचल की छाँव में !

उन बचपन की गलियों में , उस बचपन के गाँव में !

याद आता है जीवन का हर एक सवेरा !

सदा मेरे सर पे रहा हाथ तेरा !

हे! मेरी जननी है तेरी छवि निराली !

तेरे आशीर्वाद  ने हर बला मेरी टाली!

तेरी स्तुति करूँ , तेरा गुणगान गाऊं!

हर जन्म में तेरा ही लाल बनकर आऊँ!

धन्य हो जाऊं तेरी सेवा में ये जीवन लुटाकर !

तेरे एहसानों का कुछ तो मैं कर्ज चुकाकर !

जा ना सकूँ कहीं दूर बाँध दे कोई जंजीर मेरे पाँव में

आरजू है माँ कि फिर लौट आऊँ तेरे आँचल की छाँव में !

उन बचपन की गलियों में , उस बचपन के गाँव में !

 

 

 

 

---------------डॉ. अनुराग सैनी ------------------

मौलिक व अप्रकाशित

 

 

 

 

 

 

 

 

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 6:58am

सुन्दर भावों से सजी इस रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!

Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 4:25am

सुन्दर भावनाओं में डूबी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय अनुराग जी।

 

सादर,

विजय निकोर 

Comment by ajay sharma on September 29, 2013 at 10:37pm

bahut bahut bahut .................sadhuwad 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 29, 2013 at 8:39pm

तहे दिल से पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

Comment by Meena Pathak on September 29, 2013 at 8:27pm

आँसू ला दिया आपने आँखों में .... दिल को छू गई आप की रचना 

बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service