For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रुसवाईयां ही रुसवाईयां
दूर तलक गम की
कोई ख़ुशी नही है अब
चैन कहाँ मिले...

परछाईयां ही परछाईयां
हर वक़्त अतीत की
कोई  भोर नही है अब
रोशनी कहाँ मिले...

अंगड़ाईयां ही अंगड़ाईयां
रोज एक थकन की
कोई आराम नही है अब
कहाँ शाम ढले...

तन्हाईयां ही तन्हाईयां
इस अकेलेपन की
कोई साथ नही है अब
जीना है अकेले...


न ख़ुशी न सुकून
न आराम
न साथ किसी का
फिर भी जिए जा रहा हूँ....

जितेन्द्र ' गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 728

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 13, 2013 at 12:05am

आपने रचना को सराहा, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय देवेन्द्र भाई

सादर!

Comment by Devendra Pandey on September 12, 2013 at 2:52pm

Bahut Sundarr 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 9:12pm

रचना पर भावों को स्पष्ट करती हुयी आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से मन को बड़ी ख़ुशी व् लेखनी को अति मनोबल मिला, आपका दिली आभार आदरणीय बृजेश जी, आशीर्वाद व् स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 2:22pm

मन के एकाकीपन में सब व्यर्थ सा ही लगता है। सब बोझिल सा, जहां उम्मीद की किरन बहुत मुश्किल से प्रवेश कर पाती है। ऐसे पलों को बहुत अच्छे से शब्द देने का प्रयास किया है आपने।
आपको हार्दिक बधाई!
सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 3, 2013 at 1:05am

सच कहा आपने गीतिका जी, जीवन में ऐसा समय आता है जब इन्सान को निराशा ही निराशा दिखती है, और ऐसे समय के दौरान इन्सान बहुत सी मूल्यवान निधि को खो देता है, परन्तु इन सबका कारण अहम नही होता, क्योकि जब प्रेम में विरह वेदना होती है तो इन्सान का विश्वास डगमगाने लगता है, विरह इन्सान के मन में प्रेम को कमजोर व् अविश्वास को बढाने लगता है, वह अविश्वास में अँधा होने लगता है, जैसे की प्रेम को पाकर अँधा होता है,

इन कारणों से सारे समर्पण, सुंदर क्षण, पुर्वमिलन की खुशियाँ सब उसे मानसिक रूप से परेशान करने लगते है,और उसे हर तरफ से निराशा घेर लेती है,

रचना पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया ने, लेखनकर्म के प्रति आत्मबल को दोगुना कर दिया,आपका बहुत बहुत आभार गीतिका जी,

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 1, 2013 at 10:31pm

आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से लेखनकर्म के प्रति मनोबल दोगुना हुआ, दिली आभार आपका आदरणीय अरुण अनंत जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 1, 2013 at 9:34pm

आपने रचना पर अपना अमूल्य समय दिया, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेन्द्र जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 1, 2013 at 9:31pm

आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुयी, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया विजयश्री जी

सादर!

Comment by वेदिका on September 1, 2013 at 4:57pm

जीवन मे ऐसे क्षण आते है कि सकारात्मकता सम्मुख होते हुये भी हम उसके होने को महसूस नहीं कर पाते| क्यूकी उस समय मन निराशाओं से घिरा हुआ रहा करता है तो वह एकांत के पार कुछ भी नही देख ने को राजी होता| ऐसी मनः स्थिति मे रह कर हम अपने जीवन के सौंदर्य और आनंद कि मूल्यवान निधि को खो देने के स्तर पर आ जाते है| इसका कारण कई बार अहम भी हो सकता है| 

देव! 

किसलिए तू व्यग्र है देव!

देख!

समर्पण समग्र है देव!

देव!

मै नही यहाँ वहाँ देव !

देख!

तू ही यत्र, तत्र है देव!

देव!

इस क्षणों और विचारों को व्यक्त करती हुईं आपकी भावमय पंक्तियों पर शत शत शुभकामनायें स्वीकारिए जितेंद्र गीत जी!! 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 1, 2013 at 11:59am

आदरणीय जीतेंद्र भाई जी प्रेम में विरह से उत्पन्न ह्रदय के भावों को सुन्दरता से पिरोया है आपने दिल से बधाई स्वीकारें इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service