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झूठ नहीं बोलते (लघुकथा)

एक लड़का लड़की रेस्तरां में बैठे थे ..

लड़का : अब मान भी जाओ, इतना गुस्सा ठीक नहीं .
लड़की : देखो तुम्हे झूठ नहीं बोलना चाहिए था,प्यार में झूठ नहीं बोलते

तभी लड़की का फोन बजा ..
हेलो! ..हाँ मम्मी में रस्ते में ही हूँ ..

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Comment

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Comment by Bhasker Agrawal on December 26, 2010 at 3:25pm
धन्यवाद अभय जी
Comment by Abhay Kant Jha Deepraaj on December 26, 2010 at 11:21am
भास्कर जी आपकी प्रस्तुति आज के समाज का सजीव चित्र है | धन्यवाद  - अभय दीपराज
Comment by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 11:36am
धन्यवाद गणेश जी..शीर्षक अच्छा दिया आपने " दोमुहां साप " .. "दोमुहां प्यार " भी रख सकते हैं :)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 24, 2010 at 10:07am

हेलो! ..हाँ मम्मी में रस्ते में ही हूँ .. हा हा हा , भाई रेस्तरा कहना चाह रही होगी, हड़बड़ी मे रस्ते निकल गया होगा या रेस्तरा का शोर्ट फॉर्म होगा, हा हा हा ....

भास्कर भाई ! बहुत बढ़िया और सटीक लघुकथा ... यदि मुझे इसका शीर्षक देना होता तो मैं देता " दोमुहां साप "

Comment by Bhasker Agrawal on December 24, 2010 at 8:41am
धन्यवाद सलिल जी..
Comment by sanjiv verma 'salil' on December 24, 2010 at 8:19am
samyik-sateek.
Comment by Bhasker Agrawal on December 23, 2010 at 11:58pm
मेरी पहली लघुकथा है नविन जी...ख़ुशी है के आपको पसंद आई ..धन्यवाद

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