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कार्यक्रम :- ओबीओ लखनऊ चैप्टर का उदघाटन एवं काव्य गोष्ठी

मुख्य अतिथि :- श्री डंडा लखनवी

अध्यक्ष :- श्री गणेश जी बागी

      साहित्य के साथ लगाव रखने के बावजूद सामान्य जीवन की आपाधापी में साहित्यिक गतिविधियों से दूरी सी ही बनी रहती है। बहुत प्रयासों के बावजूद साहित्यिक गोष्ठियों और आयोजनों में जाना न के बराबर ही रहा। ओबीओ पर आने के बाद से जहाँ रचनाकर्म में कुछ सार्थकता लाने का प्रयास हुआ, वहीं समय निकालकर ऐसे आयोजनों में सम्मिलित होने की प्रवृत्ति भी बढ़ी।

     एक दिन आदरणीय गणेश जी बागी ने मुझे बताया कि वे 18 मई को लखनऊ आ रहे है। उनका विचार था कि क्यों न हम लखनऊ और आस-पास के सदस्य एक साथ कहीं बैठें और एक-दूसरे को सुनें-सुनायें। यह विचार ही अपने आप में अद्भुत है। नेट की आभासी दुनिया में रोज एक-दूसरे की रचनाओं पर टिप्पणी करते, संवाद बनाते बहुत से लोग बहुत करीब लगने लगते हैं। ऐसे लोगों से साक्षात भेंट एक स्वप्न के साकार होने जैसा अनुभव देता है। मैं यह सुनहरा अवसर खोना नहीं चाहता था तो मैंने तुरत प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

      ओबीओ के सदस्यों में मैं उस समय तक केवल जी और प्रदीप जी से ही परिचित था, अतः  मैंने सर्वप्रथम इन्हीं दोनों को इसकी सूचना दी। आदरणीय प्रदीप जी ने एक बहुत ही सुंदर सुझाव दिया कि ओबीओ लखनऊ चैप्टर की शुरूआत कर ली जाए। आदरणीय बागी जी से इस संबंध में वार्ता की गयी और उनकी सहमति प्राप्त होते ही हम सब दोगुने उत्साह के साथ तैयारी में लग गए। 

      आयोजन में कितने लोग उपस्थित होंगे इसको लेकर शंका बनी हुई थी। केवल भाई ने राजभवन के सामने निर्माण भवन परिसर में स्थित डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ के भवन में कक्ष संख्या 5 बुक कराया था। जब हम लोग उसे देखने गए तो हम लोगों को वह कमरा छोटा लगा। हमारे लिए यह विकट समस्या थी। काफी हाथ-पैर मारे गए लेकिन कुछ बेहतर समाधान न मिल सका।

     आखिर वह दिन भी आ गया। उत्साह और शंका के बीच झूलते मैं, केवल भाई व प्रदीप जी आयोजन स्थल पर पहुंचे। ‘होइहै वही जो राम रचि राखा’। वहां पहुंचने पर पता चला कि सभागार में संघ का कोई कार्यक्रम चल रहा है और हम लोगों ने जो कमरा बुक कराया था उसमें कोई साहब अपना सामान लॉक करके चले गए हैं। हमें तुरत दूसरा कमरा उपलब्ध कराया गया जो पहले वाले कमरे से बेहतर था। हम तीनों प्रसन्न थे। 

      दिनांक 18.05.2013 का दिन हमारे लिए एक नई अनुभूति लेकर आया। इस कार्यक्रम में श्री गोबर गणेश, श्री डंडा लखनवी, डा. तुकाराम वर्मा, श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेयी, श्री गणेश जी बागी, श्री आदित्य चतुर्वेदी, श्री बृजेश नीरज, श्री केवल प्रसाद, श्री प्रदीप सिंह कुशवाहा, मो. आरिफ, राजर्षि त्रिपाठी, श्री आशुतोष बाजपेयी, श्री संदीप मिश्र आदि उपस्थित हुए। हम लोगों ने जिनको आमंत्रित किया था उनमें कई लोग उस दिन विभिन्न कारणों से उपस्थित नहीं हो सके।

      इस कार्यक्रम में श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेयी की उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण रही क्योंकि वे कानपुर से चलकर सिर्फ इस आयोजन में शिरकत करने के लिए उस दिन लखनऊ आयी थीं जो उनके साहित्य और ओबीओ के प्रति लगाव का द्योतक है। हास्य-व्यंग्य के प्रसिद्ध कवि श्री डंडा लखनवी ने मुख्य अतिथि के रूप् में उपस्थित होने का हम लोगों के आग्रह को स्वीकार कर लिया था तथा डा. तुकाराम वर्मा जी ने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद इस कार्यक्रम को पूरा समय दिया। 

     कार्यक्रम की तैयारी के दौरान ही लखनऊ के प्रसिद्ध हास्य कवि श्री आदित्य चतुर्वेदी से न केवल भेंट हुई वरन उनसे हमारा सान्निध्य भी बढ़ा। इस कार्यक्रम की तैयारी में उन्होंने पूरा समय व सहयोग दिया और ओबीओ की गतिविधियों से आकर्षित होकर उन्होंने इसकी सदस्यता भी ग्रहण की। अब हमारी तिकड़ी बढ़ कर चौकड़ी बन चुकी थी।

      उपस्थित लोगों के बीच वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर गम्भीर चर्चा हुई। श्री गणेश जी बागी ने साहित्य के विकास में इंटरनेट की भूमिका पर प्रकाश डाला। श्री केवल प्रसाद ने उपस्थित लोगों को ओबीओ से परिचित कराते हुए उसकी सदस्यता तथा रचनायें पोस्ट करने के नियमों से अवगत कराया। इस अवसर पर डा. तुकाराम वर्मा ने रचनाकर्मियों को उपयोगी साहित्य के सृजन की सलाह दी। उनका कहना था कि वही साहित्य समचीन व उपयोगी माना जाता है जो देश व समाज के उत्थान की बात करता हो। श्री डंडा लखनवी ने साहित्यिक विधाओं की उपयोगिता पर कहा कि किसी भी विधा में रचना करते समय उसके नियमों को पूर्ण पालन किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि केवल लकीर पीटने से काम नहीं चलने वाला बल्कि साहित्य की परंपरा को सवंर्द्धित व विकसित करने की आवश्यकता है।

     इसके उपरान्त काव्य गोष्ठी प्रारम्भ हुई। काव्य गोष्ठी का आरंभ श्री गोबर गणेश की रचनाओं से हुआ। उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों पर कटाक्ष करती हुई अपनी चुटीली रचनायें सुनायीं-

‘खेल में भी अब खेल होने लग गया

क्रिकेट के पिच पर भी भ्रष्टाचार होने लग गया

चैके छक्के पर अब ताली कौन बजाए क्योंकि

खिलाड़ी भी सट्टेबाजों के हाथों की कठपुतली बन गया’

श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेयी ने ओबीओ के इस आयोजन में वरिष्ठ रचनाकारों की उपस्थिति पर धन्यवाद व्यक्त करते हुए अपनी रचना सुनायी-

‘सौभाग्य ये हमारा है

आज आपका साथ पाया है

मिलते रहें यूं ही सदा

बगिया फलती फूलती रहे सदा।‘

उनकी रचनाओं में जहां नारी की पीड़ा साफ झलकती थी वहीं वर्तमान सामाजिक व्यवस्था से उत्पन्न दर्द भी स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था।

मो. आरिफ ने जहाँ अपनी गज़ल से श्रोताओं का मन मोह लिया वहीं मैंने भी अपनी अतुकांत कविताओं से योगदान दिया।

       इस पूरे आयोजन व उसकी तैयारी के दौरान श्री प्रदीप सिंह कुशवाहा का उत्साह देखते ही बनता था।

      बहुत अच्छा स्वास्थ्य न होने के बावजूद उन्होंने अपनी सक्रियता और उत्साह में कोई कमी नहीं आने दी। उन्होंने मूँछ की महिमा बखान करते हुए अपनी रचना सुनायी-

‘मूँछ की भी अजब कहानी 

खिले आनन दिखे  जवानी

कद लम्बा और चौड़ा सीना 

पहने उस पर कुरता झीना 

चलता  राह रोबीली चाल 

काला टीका औ उन्नत भाल 

कभी तलवार कभी मक्खी कट 

छोटी बड़ी कभी सफा चट’

 

और फिर उनकी काव्य सरिता जो बही तो पूरे वेग के साथ बही और सारे तटबंधों को भेदती बहुत देर बाद जाकर रूकी।

 

श्री राजर्षि त्रिपाठी ने अपनी रचना के माध्यम से वर्तमान व्यवस्था पर सटीक कटाक्ष किया-

‘उन्होंने लूट ली अस्मत खुलेआम क्या करे

वो चीखती चिल्लाती सरेआम क्या करे

श्री केवल प्रसाद ने ‘लखनऊ’ का बखान कुछ इन शब्दों में किया -

‘जन्नत सा खुशनुमा ये लखनऊ है हमारा

ये चमन है हमारा

हम सुमन हैं वतन के

ये गोमती सुनहरी

मंगल करे हमारा’

डा. आशुतोष बाजपेयी ने अपने सनातनी छंदों से श्रोताओं का मन जीत लिया। उनके द्वारा किए गए छंदों के सस्वर पाठ ने कार्यक्रम को पूरे शबाब पर पहुंचा दिया। अपनी प्रस्तुति का प्रारम्भ उन्होंने प्रभु के आहवाहन से किया।

‘यह भक्त पुकार रहा तुमको सुन लो विनती यह है मन से 
कुछ और परीक्षण नाथ न हो न निराश करो इस जीवन से 
नित गर्व किया करता तुमपे कि दयामय हो शुचि कन्चन से 
तव पूजन वन्दन चन्दन से प्रभु मुक्त करो इस बन्धन से’

 

श्री आदित्य चतुर्वेदी ने राजनैतिक व्यवस्था पर भरपूर चोट किया. उनकी व्यंग्य की धार कुछ यों बही -

‘एक माफिया राजनीति से

बाहर आया

पूछने पर बताया

राजनैतिक क्रियाकलापों से

इस कदर ऊब गया

भ्रष्टाचार की नैया मैं भी

पार कर लेता

मगर क्या बताऊं

किनारे ही डूब गया।‘

उनकी रचनाओं में हास्य के पुट के साथ व्यंग्य की अत्यंत तीखी धार देखने को मिली।

वहीं श्री डंडा लखनवी जी का कहना था कि, 

‘हास्य व्यंग्य खिचड़ी नहीं, भैया रेडीमेड

हास्य विटामिन जानिए, व्यंग्य सर्जिकल ब्लेड।‘

उनकी रचनाओं ने जहां सामाजिक व्यवस्था पर चोट की वहीं कुछ सीख भी देती गयीं।

डा0 तुकाराम वर्मा ने छंद के रस से श्रोताओं को सराबोर कर दिया। वहीं अपने गीत की फुहारों से श्रोताओं को भिगोया-

‘अपने पर जो किए भरोसा, वही जगत के नूर बने

उनके क्रियाकलाप निराले, सामाजिक दस्तूर बने।‘

श्री गणेश जी बागी के छंदों और नवगीत से जहां श्रोता मंत्रमुग्ध हुए-

‘सुनो परमेश्वर मेरे, अरज इतनी हमारी है

कभी जाना न मधुशाला, यही विनती हमारी है’

वहीं उनके भोजपुरी गीतों और गज़लों से माहौल रसमय हो गया-

‘भईल बियाह कमात नईखs काहे,
घरही में रहेलs लजात नईखs काहे,

तीज के त्यौहार बा नया लुगा चाही,
सोहाग सिंगार कईसे मेहंदी लगाईं,
दोसरो के देख शौकियात नईखs काहे,
भईल बियाह कमात नईखs काहे’

      यह कार्यक्रम कई मायनों में सार्थक रहा। एक तरफ जहां आभासी दुनिया से निकलकर हम ओबीओ के कई साथी पहली बार आपस में मिले वहीं इस आयोजन के बहाने कई नए साथी भी मिले। कई वरिष्ठ साहित्यकारों का आशीष प्राप्त हुआ।

      लखनऊ की धरती पर ओबीओ ने दस्तक दी है जिसकी अनुगूंज बहुत दूर तक सुनायी देगी।

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प्रिय अनन्त जी ,

सस्नेह 

आपने व्यस्त समय से इस कार्यक्रम के प्रारम्भ से अंत तक जो अविस्मरणीय सहयोग दिया उसके प्रति आपका  आभार व्यक्त करना जरूरी है. 

आगे भी स्नेह ,सहयोग की अपेक्षा बनी रहेगी 

आभार 

जी! बृजेश जी अपने बिलकुल सही कहा अभी इसकी शुरुआत है आगे इसकी अनुगूँज दूर तक सुनाई देगी । ऐसा ही हो हम सब आपस मे मिलजुल कर ऐसे आयोजनो के माध्यम से कुछ सामाजिक उपकार भी कर पाएँ ऐसी मेरी दुआ है और अभिलाषा भी ।

आदरणीया आपका हार्दिक आभार! आपने कानपुर से आकर कार्यक्रम में जो शिरकत की है उसने हमारा उत्साहवर्धन किया। आपसे ऐसे ही आगे के आयोजनों में स्नेह और आशीष की अपेक्षा है।

आदरणीया अन्नपूर्णा जी 

सादर 

भीषण ताप सहते हुए मंच पर महिला समूह का प्रतिनिधित्व दिया. 

सादर आभार. 

इस आयोजन के लिए आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ.....मुझ अकिंचन को जो मान मिला मै उस से अतीव प्रसन्न और संतुष्ट होने के साथ ही आप सभी से साक्षात मिल सका इस बात से भी अतीव प्रसन्न हुआ.....वैसे मै लखनऊ की साहित्यिक गतिविधियों में निरंतर संलग्न रहता हूँ और बाहर भी मंचों पर प्रस्तुतियां देता हूँ लेकिन इस आयोजन में जो आनन्द मिला वो अन्यत्र दुर्लभ है 

आदरणीय आशुतोष जी आपका हार्दिक आभार! आपको आयोजन से प्रसन्नता हुई यह जानकर हम सबका श्रम सार्थक हुआ। आपने अपनी व्यस्तताओं के बीच हमारे इस आयोजन को पूरा समय दिया इसके लिए हम आपके आभारी हैं। आगे आपका स्नेह और आशीष हमारे साथ बना रहेगा यह हमारा विश्वास है।

     आ0 आशुतोष भाई जी,   आपकी प्रतिक्रिया को पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हुई, किन्तु मुझे ऐसा लग रहा है कि आपने प्रस्तुत कार्यक्रम को अपना नहीं समझा।  प्रिय मित्र! यह सम्पूर्ण ओ0बी0ओ0 मंच और ओ0बी0ओ0 लखनऊ चैप्टर आपका अपना ही मंच है। आप स्वयं की इसके एक सुध्दृढ़ स्तम्भ हैं।  इस मंच में आपकी उपस्थिति, विचार, सुझाव और  सभी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर सक्रियता/भाग लेने हेतु परमआवश्यक और अनिवार्य भी है।  और हम अपेक्षा ही नहीं पूर्ण विश्वास भी करतें हैं कि आप इस ओ0बी0ओ0 लखनऊ चैप्टर मंच को विस्तार देने में  अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।  सादर,

आदरनीय आशुतोष जी 

सादर 

मैं आदरणीय केवल प्रसाद जी के कथन से सहमत. आशा है की आप भी होंगे .

आदरणीय आशुतोष जी 

सादर 

आपने हमारा मान बढ़ाया , आभार 

संतुष्ट हुए ,,,,,मन खुश हुआ 

आगे भी मार्गदर्शन देने हेतु पधारते रहें, सादर अनुरोध है 

आदरणीय बृजेश जी सादर, वाह! आपके इस आँखों देखे हाल ने सीधे समारोह स्थल पर पहुंचा दिया है. पढ़कर ज्ञात होता है की आशा से भी अधिक अच्छी शुरुआत मिली है ओ बी ओ के लखनऊ चेप्टर को. इस शुरुआत को पूरी तन्मयता से सभी लखनऊ के साहित्य प्रेमियों  और वरिष्ठ साहित्य धर्मियों के  सहयोग से पूरी बुलंदियों पर ले जाना, तभी इसकी सार्थकता जान पड़ेगी. इतनी सुन्दर शुरुआत पर अपार हर्ष हुआ,मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएं.

आदरणीय रक्ताले जी, आपका हार्दिक आभार! इस सफलता के पीछे आप सबका आशीर्वाद काम कर गया।
हमारा प्रयास रहेगा कि यह लौ दिनोंदिन अधिक प्रकाशमयी हो।
अपना स्नेह और आशीष यूं ही हम लोगों को प्रदान करते रहिए।
सादर!

आदरनीय अशोक जी 

सादर 

आ से प्राप्त उर्जा को हि मूर्त रूप देने का प्रयास किया गया है. 

स्नेह हेतु आभार 

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