For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब चमन पुरबहार होते हैं

जब चमन पुरबहार होते हैं
खार भी लालाज़ार होते हैं

कौन साथी है दौर-ऐ-ग़ुरबत का
सब बनी के ही यार होते हैं

हम गिला क्या करें जफ़ाओं का
जब सितम बार बार होते हैं

टूट जाते है चन्द बातों से
रिश्ते कम पायदार होते हैं

अजनबी हमसफ़र तो ऐ लोगों
रास्ते का गुबार होते हैं

आज के दौर की अदालत में
बेगुनाह गुनाहगार होते हैं

जिनमे इमरज-ऐ-बुग्ज़-ओ-कीना हो
क़ल्ब वो दाग़ दार होते है

यूँ न अबरू को दीजिये जुम्बिश
हम तो खुद ही शिकार होते है

ये हकीक़त है आज महलों की
मकबरों में शुमार होते हैं

नाज़ खुद पर "हिलाल" मत करना
तुझसे शायर हज़ार होते है

Views: 1382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hilal Badayuni on January 10, 2011 at 8:28pm

shukriya aasha ji

aapne ghazal ki pazeerai farmayi

ek baat yaad aayi k der aaye durust aaye shukriya

Comment by asha pandey ojha on January 10, 2011 at 8:23pm
जब चमन पुरबहार होते हैं
खार भी लालाज़ार होते हैं

कौन साथी है दौर-ऐ-ग़ुरबत का
सब बनी के ही यार होते हैं .. Wonderful gzal ... may aalha bless u always
Comment by Hilal Badayuni on October 27, 2010 at 6:55pm
जनाब सतीश साहब गणेश जी विवेक जी नविन भाई
बेहद शुक्र गुज़ार हूँ क आप लोग मुहाब्बत से नवाजते है मेरा कलाम
मेरी य्तारफ से आगे पूरी कोशिश रहेगी के उर्दू अक्फाज़ का मेअनिंग लिखू
मेरे पास जो कुछ भी न्ज्ञान है वो इस ओ बी ओ परिवार और आप सभी के स्नेह क लिए सदौव समर्पित है
आपका हिलाल
Comment by satish mapatpuri on October 27, 2010 at 12:52pm
हम गिला क्या करें जफ़ाओं का
जब सितम बार बार होते हैं
ज़नाब अहमद साहेब, बहुत खूबसूरत ख्याल है, शुक्रिया.
Comment by विवेक मिश्र on October 27, 2010 at 2:24am
हिलाल भाई.. आपके अशआर हमेशा ही मजबूत ख्यालों से लबरेज रहते हैं. इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिए भी दाद कबूल करें. आपसे गुजारिश है कि आपके ख्यालों से हर कोई रूबरू हो सके, इसके लिए, कठिन लफ़्ज़ों के मायने जरूर लिख दिया करें.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2010 at 10:23pm
बेहतरीन हिलाल भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने, एक निवेदन है आपसे कि उर्दू कठिन शब्दों का हिंदी अर्थ यदि संभव हो तो ग़ज़ल के अंत मे लिख दे, जिससे हिंदी भाषियों के उर्दू शब्द कोष भी समृद्ध हो सके |दाद कुबूल कीजिये बेहतरीन ग़ज़ल पर |
Comment by Hilal Badayuni on October 26, 2010 at 3:08pm
बहुत बहुत शुक्रिया तिवारी जी
मुझे इस पूरे ओ बी ओ परिवार से इसी स्नेह की आशा है
शुक्रिया
Comment by Hilal Badayuni on October 26, 2010 at 2:59pm
शुक्रिया नविन भाई
आपकी मुहब्बत जो आपने ग़ज़ल को सराहा
भाई मर्ज़ का बहुवचन इमराज़ होता है बुग्ज़ का मतलब अदावत होता है और कीना का मतलब पोशीदा दुश्मनी
जिनमें इमरेजेबुग्जोकीना हो|
कल्ब वो दागदार होते हैं||
इसलिए इस शेर में ख़ाक सार ने कहा है की वो दिल जो अदावत और दुश्मनी के मर्ज़ से ग्रस्त है वो दाग दार होता है

उम्मीद करता हूँ अब आपको कोई शंका नहीं रही होगी
आपका अपना
हिलाल अहमद "हिलाल "

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service