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प्रश्नवाची मन हुआ है

प्रश्नवाची 
मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन 
क्या मुझे अधिकार है ये 
मैं दशानन को जलाऊँ ??

खींच कर 
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ 
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ 
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर 
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??

झूठ, माया-मोह 
ईर्ष्या के असुर नित रास करते 
स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते 
पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज उड़ा 
क्या मुझे अधिकार है
'पातक' दशानन को जताऊँ ??

अपहरित 
अंतःकरण की मुक्ति हित बलदेव बन के 
बालने हैं अब दशानन सम सभी दुर्दैव मन के 
बिन स्वयं हो मुक्त दुर्गुण के असित प्रतिबन्ध से 
क्या मुझे अधिकार है 
दुर्नय दशानन के दिखाऊँ ??

--सीमा अग्रवाल

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Comment

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Comment by Vinita Shukla on October 26, 2012 at 10:25pm

बहुत ही सुन्दर और परिमार्जित भाषा- शैली में, अंतस में छुपे रावण का;  दहन करने की छटपटाहट, मुखरित हुई है इस रचना में. कोटिशः बधाई सीमा जी.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 26, 2012 at 10:09am

आदरणीय सीमा जी, लाजवाब रचना ! शब्द नही बधाई को..... फिर भी, अनंत बधाइयां स्वीकारें....!

Comment by shalini kaushik on October 24, 2012 at 11:51pm
है ये सबसे कह रहा 
पूजते हो गर तुम श्रीराम को 
मानते हो अगर सिया को पूजनीय 
तो तुम्हे अधिकार है 
बढ़कर आगे 
जला डालो रावन रुपी हर बुराई को 
 
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति सीमा जी 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 8:17pm

प्रश्नवाची मन हुआ है,
सुलग रहे हैं अभिकथन |
क्या मुझे अधिकार है ?
मैं जलाऊँ दशानन ||

वाह आदरणीया वाह, मन मुग्ध हो गया इस रचना से साक्षात्कार कर के, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें इस अभिव्यक्ति पर |

Comment by रविकर on October 24, 2012 at 12:31pm

बढ़िया प्रस्तुति |
शुभ विजया ||
सादर -

Comment by seema agrawal on October 23, 2012 at 2:16pm

//कैसे धन्यवाद कहूँ !// वाह क्या बात है सौरभ जी, अब मेरे लिए भी समस्या हो गयी न कि आपको मै धन्यवाद कैसे दूं |
आप सबके द्वारा मिले प्रोत्साहन का ही परिणाम कहूँगी इसे जो आपकी इस प्रकार की प्रतिक्रिया को ग्रहण करने का मौका मिला
.......सादर आभार

Comment by seema agrawal on October 23, 2012 at 2:12pm

आभारी हों राज़ जी आपकी उपस्थिति और सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए

Comment by seema agrawal on October 23, 2012 at 2:11pm

आदरणीय लक्ष्मण जी आपकी उपस्थिति अत्यधिक उर्जायुक्त होती है और एक तरफ तो मन प्रसन्न कर देती है तो दूसरी तरफ नया उत्साह भर देती है प्रतिक्रया स्वरुप दी गयी आपकी पंक्तियों हेतु आभार

Comment by seema agrawal on October 23, 2012 at 2:07pm

हृदय से धन्यवाद आदरणीय राजेश जी

Comment by seema agrawal on October 23, 2012 at 2:06pm

प्रिय प्राची ,
आपका कहना बिलकुल ठीक है अगर इस प्रश्न को हर कोई अपने समक्ष खड़ा कर ले तो शायद बहुत से आत्मिक और मानसिक
विकारों का समाधान मिल जायेगा ..बहुत बहुत आभार आपका

कृपया ध्यान दे...

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