For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(नए मोड़) 


मोड़ राहो में नए अब जोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
चल रही यू ज़िन्दगी ज्यों पानी में लहरें हो उठी,
खुद को समझ अब एक लहर किनारे मोड़ देता हूँ ,
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ,
जो हैं समझते कुछ नहीं मैं वो बड़े नादान हैं,
नादानियो में एक समझ बस जोड़ देता हूँ ,
ना दिखे सूरत तुम्हारी लाख महंगा है तो क्या,
ये शीशा ही नहीं सच्चा इसे लो तोड़ देता हूँ , 
कुछ पुराना कुछ नया सब छोड़ देता हूँ ! 
---------------------------------------------------------------
(इस जहाँ में नही)

काबिल-ऐ-तारीफ है यू तो कायनात सारी,
उनकी आँखों में है जो बात , इस जहाँ में नही ,
पा के देखा है खुदा भी मगर सुकून ना मिला ,
उनको पाने में है जो एहसास , इस जहाँ में नही ,
बहुत ही ख़ास होता है जिस दिल में मुहब्बत हो ,
जुदा अंदाज़ होता है जहाँ मिलती नज़ाक़त हो ,
उनके दिल में है जो ज़ज्बात , इस जहाँ में नही ,
उनके जीने में है जो अंदाज़ , इस जहाँ में नही !
----------------------------------------------------------

(मैं) 

अब ना हँसाओ मुझे , यू ही उदास रहने दो ,

बहता है अब लहू जो , आँखों से बहने दो ,
तुम क्या जानो , है दर्द -ऐ-मुहब्बत क्या ,
हर दर्द मुझको अब , हस हस के सहने दो ,
बन तो जाती तकदीर अपनी , मैं जो कहता ,
फिर कौन कहता खुदा को , खुदा ही रहने दो ,
बड़ी मुद्दत में ये आजाद अब आजाद हुआ है ,
आजाद हूँ जो अब मुझे आजाद रहने दो !
-----------------------------------------------------------
(आज़ाद)

गम तो सब पे होते हैं , फर्क सिर्फ इतना है,
कुछ लड़ते हैं हालातों से और कुछ डर जाते हैं ,
कुछ जीते हैं और कुछ मर जाते हैं ,
और कुछ वो हैं जो हर घाव को पन्नो से सिये जाते हैं ,
वहीँ एक शख्श है,
जो लड़ता भी है डरता भी है,
जीता भी है मरता भी है,
अपने हर घाव को पन्नो से सीता भी है,
उसी नाचीज़ को आज़ाद कहते हैं !

------------------------------------------------------------
(अस्तित्व)
 

एक द्वन्द हमारे मन में जाने कब से पलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
किसने है बनाया ये समाज पी के जो खून चलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
मैं प्रेम नही कर पाऊं मैं राह नही चुन पाऊं ,
जितने बंधन मैं तोडूँ उतना कसता ही जाऊं
, ये ज़हर हमारी नस नस में जाने कब से घुलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
लड़की बन मान बढाऊँ मैं लड़का बन मान बढाऊँ ,
कौन बेहतर है किस्से ये समझ नही मैं पाऊँ  ,
युवा वर्ग क्यूँ धीरे -धीरे इस कुंठा में गलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,
बस एक रास्ता है मुझपे मैं भी अब नंगा हो जाऊँ  , 
पहचान छोड़ कर मैं अपनी घटिया समाज में खो जाऊँ  ,
झूठ है ये जो कर्म करोगे वैसा फल मिलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,

Views: 399

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 24, 2012 at 12:48pm

ब्रजेशजी, आपकी प्रस्तुतियों के प्रति हार्दिक बधाई. भावनाओं का बेहतर प्रस्फुटन हुआ है. इसे संयत करते रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 10:54pm

आपका बहुत आभार  आदरनीय गणेश जी , आपको रचनाएँ पसंद आयीं मेरा प्रयास सफल हुआ !

Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 10:49pm

आपका बहुत आभारी हूँ आदरणीया राजेश जी, आप जैसे महान रचनाकारों के ही आशीर्वाद से ही ये रचनाये लिख सका हूँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 23, 2012 at 8:30pm

बढ़िया रचनाएं अलग- अलग पहचान बनाती हुई बहुत बधाई आपको 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2012 at 6:44pm

//एक द्वन्द हमारे मन में जाने कब से पलता है ,
लड़की होना खलता है कभी लड़का होना खलता है ,//

बहुत खूब, लड़की और लड़का, दोनों एक दुसरे के पूरक फिर कभी लड़का होना खलता है तो कभी लड़की होना खलता है,

पाचों रचनाएँ अलग अलग खुशबुओं से सराबोर हैं, प्रयास अच्छा लगा , बधाई स्वीकार करें आदरणीय आजाद जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
12 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service