For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरी हाँ

कई दिनो से 
घर के बाहर 
चक्कर लगाते-लगाते
एक दिन अचानक वो
ठहरा, झिझकता हुआ बोला
मै डरते-डरते मुस्कुरा दी,

 
बात ही कुछ ऎसी थी
जो खास होते हुए भी

लगी कुछ खास सी
परन्तु उसे कुछ खास बनाने को
लालायित थी मै भी

 
मेरा समर्पण भी
नही था कुछ कम 
किन्तु,परन्तु,लेकिन 
शब्दों का जमावड़ा मिटा
बात बस हाँ की थी
और हाँ में ठहर गई


अब वो लगाता नही चक्कर
घर के बाहर 
घर में ही रहता है
परन्तु

मेरी आँखे तलाशती है
उन बोलती आँखों को 

आज भी

जो मेरे लिये 
कुछ भी कर सकने का
रखती थी जुनून
मेरी हाँ पाने के बाद
मगर आज 
किन्तु,परन्तु,लेकिन में लिपटकर

रह गई है--

 


 

Views: 304

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनीता शानू on September 17, 2011 at 12:03pm

धन्यवाद सौरभ जी।

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2011 at 6:04pm

रचना के कथ्य पर साधुवाद.

Comment by सुनीता शानू on September 15, 2011 at 5:37pm

गणेश जी आपने बिलकुल सही कहा है। जो चीज़ जब तक नही मिलती हम उसे पाने की हर कोशिश करते हैं। और मिल जाने के बाद निश्चिंत हो जाते हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद आपने मेरे विचारों को समझा।

Comment by सुनीता शानू on September 15, 2011 at 5:37pm

धन्यवाद कैलाश जी।आपको रचना पसंद आई।

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 15, 2011 at 10:21am

शानू जी, आदर्श और वास्तविकता के मध्य महीन डोरी खीचने का कार्य आपने बाखूबी किया है, सब समय समय की बात है, जो नहीं मिलता उसके पीछे हम भागते है और जब मिल गया तो फिर वही...नया अध्याय प्रारंभ ..कुछ और जो नहीं मिल सका उसको पाने के भागम भाग में व्यस्त....

बेहद मार्मिक रचना, शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |

Comment by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 3:22pm

मन की कशमकश को चित्रित करती बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service