लघुकथा : बहू-बेटी
“अम्मा ! तुम भी घर का कोई काम किया करो, नहीं तो इस तरह तुम्हारे हाथ-पैर जुड़ जाएंगें।” घुटनों के दर्द से करहाती अपनी माँ की दुर्दशा देखकर ससुराल से आई बेटी ने कहा।
“ हाँ बेटी ! तू ठीक ही कहती है, किया करूंगी कुछ काम....”
“ हाँ दीदी, मैने भी कई बार अम्मा जी से कहा है कि आप भी कुछ काम किया करें .......” पास बैठी बहू ने कहा
” काम किया करूँ, तो तुझे ब्याह कर लाने का मुझे क्या फायदा........... काम किया करो....” सास ने बहू की बात को बीच में ही काटते हुए तीखे स्वरों में कहा।
Comment
.सार्थक लघु कथा ! लेखनी की इस धार को सलाम है ............. बधाई मित्र !
Aapne Sach likha hai !! Khoob hai !!
आदरणीय रवि प्रभाकर जी आपने बहुत ही गहरी बात कही हे इस लघु कथा के माध्यम से ये भेद जो इस नाज़ुक रिश्ते मे बना हुआ हे वो शायद कभी ख़त्म नही हो सकता हाँ आज समय के साथ सास बहू के रिश्ते की परिभाषा ज़रूर बदली हे सोच भी बदली हे मगर आज भी कुछ परिवार हे जहाँ बहू और बेटी का फ़र्क उनके बीच की दूरिया कभी दूर नही हो पाती इस भावुक और उम्दा लघु कथा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.
kam shabdon me kitni khubsurati se aapne in kunthao ko prakat kar diya.
shayad isi ko laghukatha kahte hai.
बागी भाई एवं श्रद्धेय पाण्डेय जी,
आपकी हौसला अफजाई के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद।
रवि प्रभाकरजी, इस तरह के मनस को संतुलित होने में कितने वर्ष अभी और लगेंगे इसकी चर्चा तो बाद में. पहले तो ये कि इन व्यक्तिगत किन्तु सार्वभौमिक कुंठाओं की क्या दवा है?
आपकी प्रस्तुत कथा ऐसी विसंगतियों की धार को कुछ कुंद कर सके इस अपेक्षा के साथ हार्दिक शुभकामनाएँ.
आदरणीय रवि प्रभाकर जी, आपकी कलम कम शब्दों में वह लिख जाती है जिसको कहने के लिए एक किताब की जरुरत है, प्रस्तुत लघु कथा धीरे से प्रारंभ होकर एकाएक चोट करती है, इस लघु कथा का भाव उसी प्रकार है जैसे कोई शक्तिशाली पटाका का पलीता धीरे धीरे सुलगते हुए अचानक धम्म की आवाज के साथ समाप्त किन्तु सन्न की आवाज देर तक कानो में गूंजता रहता है |
भाव प्रधान लघु कथा हेतु बहुत बहुत आभार |
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