For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

दूर मंजिल कब मिलेगी रास्ता कोई नहीं,
वो मुसाफिर हूँ कि जिसका रहनुमा कोई नहीं.

आशिकी में जो बने हैं आज मजनू  देखिये,
है अजब ये चीज उल्फत खुशनुमा कोई नहीं.

दोस्ती से दिल मिला लो सामने है आइना,
दुश्मनी को दूर रक्खो है मज़ा कोई नहीं .

वो जो आये हैं यहाँ पर खिल गया है दिल मेरा,
आज सारे सुर लगे हैं बेसुरा कोई नहीं.

चाँदनी के बीच चंचल चाँद सा चेहरा लगे,
घर वो लाये जान पाये बावफा कोई नहीं.

आज किस्मत को सँवारे आज ही है कीमती, 
आज तो बस आज ही है आज सा कोई नहीं.

आज 'अम्बर' आसमां है वो लगे धरती मेरी,
प्यार से ही प्यार उपजे दूसरा कोई नहीं.


--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 444

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Veerendra Jain on July 28, 2011 at 11:56pm

चाँदनी के बीच चंचल चाँद सा चेहरा लगे,
घर वो लाये जान पाये बावफा कोई नहीं.

 

bahut hi behtarin...badhai ..Ambarish ji...

Comment by राज लाली बटाला on July 28, 2011 at 9:11pm

आज किस्मत को सँवारे आज ही है कीमती, 
आज तो बस आज ही है आज सा कोई नहीं. !! khoob!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 28, 2011 at 7:14pm

अर्थ पाती भावना है,  बेमजा  कोई  नहीं.  ............  

बहुत-बहुत बधाई.

Comment by sangeeta swarup on July 28, 2011 at 3:34pm

वो जो आये हैं यहाँ पर खिल गया है दिल मेरा, 
आज सारे सुर लगे हैं बेसुरा कोई नहीं. 

मन प्रसन्न हो तो सब अच्छा ही लगता है ..बहुत खूबसूरत गज़ल ... 

 

सब्जियों पर भी अशआर गज़ब का लिखा है 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 28, 2011 at 10:38am

धन्यवाद भाई बागी जी ! आपके सुझाव अनमोल हैं ........आपका हृदय से आभार मित्रवर ...........:-)

आपको एक शेर समर्पित कर रहा हूँ......

हैं हरी चम-चम चमकतीं चाँद सा चेहरा लगे,
घर जो लाये जान पाये  ज़ायका कोई नहीं.        अर्थात सब्जियाँ .......जय हो !!!!!..........हा हा हा हा हा हा ..............:-)

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 28, 2011 at 10:36am


वसुधा जी! आपका स्वागत है ! गज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !

Comment by Vasudha Nigam on July 28, 2011 at 9:31am
आज किस्मत को सँवारे आज ही है कीमती,
आज तो बस आज ही है आज सा कोई नहीं.
बहुत ही खूबसूरत रचना हैं अंबरीश जी....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 28, 2011 at 9:24am

अम्बरीश भाई, बहुत ही सुंदर ग़ज़ल आपने प्रस्तुत किया है, आ की मात्रा को काफिया बना बहुत ही खुबसूरत शे'र कहे है, बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल हेतु |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
18 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service