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उसे पहले कभी देखा नहीं था.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

1222 1222 122

उसे पहले कभी देखा नहीं था
वो दिल के पास जो रहता नहीं था  (1)

लगी है शह्र की इसको हवा अब
हमारा गाँव तो ऐसा नहीं था  (2)

बहुत कुछ बोलती थीं आँखें उसकी
ज़ुबाँ से वो कभी कहता नहीं था  (3)

अँधेरों ने रखा था क़ैद जब तक
उजाला दूर तक फैला नहीं था  (4)

न जाने क्या हुआ भरता नहीं है
पुराना घाव तो गहरा नहीं था  (5)

वही तन कर खड़ा रहता है आगे
कभी जो सामने बैठा नहीं था  (6)

रखा था क़ैद में यादों ने तेरी
वहाँ पर तो कहीं पहरा नहीं था  (7)

बिका मैं मुफ़्त में कल रात"सालिक"
किसी की जेब में पैसा नहीं था  (8)

*मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by सालिक गणवीर on January 6, 2021 at 9:48pm

  Rachna Bhatiaजी
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by Rachna Bhatia on January 6, 2021 at 7:11pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई।बधाई स्वीकार करें।

Comment by सालिक गणवीर on January 5, 2021 at 8:50pm

उस्ताद - ए - मुहतरम Samar kabeer  साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभार। आपकी क़ीमती इस्लाह से ग़ज़ल संवर गई है जनाब। ममनून हूँ ,सलामत रहें

Comment by सालिक गणवीर on January 5, 2021 at 8:47pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी
ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by Samar kabeer on January 5, 2021 at 5:27pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'वो दिल के पास भी रहता नहीं था' 

इस मिसरे में 'भी' की जगह "जो" शब्द उचित होगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2021 at 4:04pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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