For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे-कालीपद 'प्रसाद'- संशोधित

काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे

बह्र :२१२२ २१२२  २१२२  २१२

राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे

यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |

'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ

फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|

'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में

ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||

अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था

जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त  हैरानी मुझे |

शर्त थी मिलकर ही’ हम दोनो करेंगे काम सब

लितलियों सी उड़ती, सौंपी घर की दरबानी मुझे |

'प्रेयसी की बात में माना मधुरता है मगर

जो भी कहती है वही चुभती है क्यों वानी मुझे'|

आना’ जाना तो सनातन सत्य, ‘काली’ सब गए

जिंदगी अब दीखती बेरंग वीरानी मुझे |

  

मौलिक & अप्रकाशित 

Views: 481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 17, 2017 at 5:22pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , वास्तव में ग़ालिब की जमीन में जो ज्यादा कठिन महसूस होती है मैं उसीपर लिखने की कोशिश करता हूँ ,ये सोचकर कि  इसपर अगर लिख लिया ,बाकी आसानी से लिख सकेंगे |यह भी भरोसा है की गलती होगी तो आप हमें उचित मार्ग दर्शन करेंगे |आपके सोहबत में बहुत कुछ सिखा है | ग़ालिब को पढ़कर भी  मुझे बहुत बारिकिओं की जानकारी मिली | विस्तृत विश्लेषण और मार्ग दर्शन के लिए तहेदिल से शुक्रिया | इसको सुधार कर फिर प्रस्तुत करता हूँ |

Comment by Samar kabeer on December 16, 2017 at 2:31pm

मतले के सानी मिसरे में 'सुख़नवारों' कोई शब्द नहीं होता,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

'यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे'

'राज़ की सब बात परदे में छुपी थी राज़दाँ

थी छुपी सब किन्तु की दुशनाम उरियानी मुझे'

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, और सानी में शिल्प सही नहीं,इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-

'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ

फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'

तीसरा शैर यूँ कर लें :-

'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में

ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'

4थे शैर के सानी मिसरे में 'सक्त' को "सख़्त" कर लें ।

5वें शैर के सानी में 'दरवानी' को "दरबानी" कर लें ।

छटा शैर यूँ कर लें :-

'प्रेयसी की बात में माना मधुरता है मगर

जो भी कहती है वही चुभती है क्यों वानी मुझे'

ग़ालिब की ज़मीन में ग़ज़ल कहना बहुत दुश्वार होता है ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 15, 2017 at 10:28pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , कुछ सुधार कर फिर पेश करता हूँ | कृपया एक नज़र डालें |

Comment by Samar kabeer on December 14, 2017 at 5:27pm

जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल अभी बहुत समय चाहती है,कई अशआर में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग का दोष है,शिल्प और भाषा पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है, फिर कोशिश करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service