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मगर दीवार रिश्तों से कभी ऊँची नहीं होती फिल्बदीह ग़ज़ल (राज )

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

दिलों में दूर रहकर भी कोई दूरी नहीं होती 
किसी का प्यार पाने से बड़ी पूंजी नही होती

कहाँ किसको कोई पूछे यहाँ तो नाम बिकता है 
किसी मजदूर के फन की कोई गिनती नहीं होती

 

मिटाते हैं उसे जालिम नहीं क्या जानते इतना 
कहाँ  होती भला  दुनिया अगर बेटी नहीं होती

 

बुरी हमको अगर लगती लगेगी उसको भी देखो 
किसी के साथ भी हो दिल्लगी अच्छी नहीं होती

 

सदाक़त से भरे वो लफ्ज़ वो अशआर फिक्रो फन
कहाँ अब इस जमाने की ग़ज़ल वैसी नहीं होती

नहीं डरता यहाँ इंसान ये भगवान से भी फिर 
अगर ये देह माटी की यहाँ माटी नहीं होती

 

कहीं इक फूल राहों में कोई भगवान के दर पे 
बड़ा अफ़सोस है किस्मत बड़ी सबकी नहीं होती

 

बना दीवार वो सोचें अलग सब कुछ हुआ उनका 
मगर दीवार रिश्तों से कभी ऊँची नहीं होती

.

मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

--------------

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Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:11am

आद० गिरिराज  जी आपका बहुत बहुत आभार |


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Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:10am

आद० अशोक कुमार रक्ताले जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका |


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Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:09am

आद० महेंद्र कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:09am

आद० डॉ० आशुतोष जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:08am

प्रिय प्रतिभा जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2016 at 11:07am

आद० समर भाई  जी  आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ |हाँ नेट की समस्या के चलते प्रतुत्तर देने में देरी का खेद है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2016 at 5:12pm

आदरणीया राजेश जी , अच्छी गज़ल कही आपने , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 26, 2016 at 1:44pm

नहीं डरता यहाँ इंसान ये भगवान से भी फिर 
अगर ये देह माटी की यहाँ माटी नहीं होती..............वाह !  वाह ! सही कहा है.

 आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, बहुत खूबसूरत गजल हुई है.सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Mahendra Kumar on July 26, 2016 at 7:00am
बहुत ही ग़ज़ल है आदरणीया राजेश मैम। शेर दर शेर दाद क़ुबूल करें, सादर!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 24, 2016 at 11:03pm
आदरणीया राज जी मुशायरे के कारन ब्लॉग की रचनाएं नहीं पढ़ सका था सूंदर ग़ज़लहुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम केसाथ

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