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मैं कोई मसीहा नहीं

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मैं कोई मसीहा नहीं
जो चढ़ सकूं 
सलीब पर
हँसते हँसते 
एक  अदना इंसान हूँ मैं
मुन्तजिर हूँ में 
मेरे दर्द के
 मसीहा की



 

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Comment

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Comment by आशीष यादव on April 22, 2011 at 7:20pm
shandar
Comment by Saahil on April 22, 2011 at 6:20pm
bahut khoob!
Comment by rajni chhabra on April 22, 2011 at 6:04pm
shukriya ,Vandana N Pandey ji

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 22, 2011 at 5:18pm

एक मसीहा की दरकार होती ही है कि वो सलीब पर चढ़े.. हम जैसों के लिये.

रचना हेतु धन्यवाद.

कृपया ध्यान दे...

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