For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

करें सेवा हिन्दी की // शशि बंसल

करें सेवा हिन्दी की
==================

१४ सितम्बर का दिन यानि हिन्दी दिवस के नाम। हिन्दी यानि भारतीयों की राष्ट्र - भाषा , बहुतों की मातृभाषा। समझ नहीं आता गर्व करूँ या शर्मिंदा होऊँ ? अपनी ही भाषा के लिए एक दिवस औपचारिक रूप से निर्वाह कर, एक परम्परा भर निभाकर ...... । संसार में भारत ही ऐसा देश है , जहाँ अपनी राष्ट्र-भाषा को बताने के लिए , जताने के लिए, मानने के लिए दिवस मनाया जाता है। जोर-शोर से गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं , विद्यालयीन स्तर पर अनेक प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं , वगैरह वगैरह। दिन खत्म , औपचारिकता खत्म।
भारतीय-मानस में यह विचार बहुत गहरे पैठ बना चुका है कि हम हिन्दी भाषा के साथ प्रगति नहीं कर सकते। अगर उच्च सोपान पर पहुंचना है तो अंग्रेजी का दामन आवश्यक है , भले फिर हिन्दी का आँचल ढलक जाए , हम मूक-दर्शक बने रहेंगे। आखिर ये बीज बोया किसने ? ज़ाहिर है जवाब आएगा - अंग्रेजों ने। सत्य भी है , पर हम कब तक सिर्फ उन्हें ही दोषी ठहराते रहेंगे ? कुछ जिम्मेदारी तो हमारी भी बनती है न। जब हम उन्हें निकाल बाहर कर सकते हैं तो उनकी भाषा को क्यों नहीं ? विकास का आधार अंग्रेजी भाषा है , ये पूर्वाग्रह क्यों पाले बैठें हैं हम ? क्या चीन , जापान आदि विकसित राष्ट्र नहीं है ? क्या ये उनके अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के कारण है ? नहीं न ? फिर क्यों हम भारतीयों को ही ऐसा लगता है ?
हास्यास्पद बात तो यह है कि जीवन में पग-पग के अनुभवों में देखा कि अंग्रेजी अन्य भाषाओं की तरह मात्र एक भाषा है , ये मानने की बजाय भारतीय “अंग्रेजी भाषा ज्ञान की कुंजी है” , ऐसा मानते हैं। जिन्हे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है , वह पूर्ण ज्ञानी है , ऐसी तो निराधार सोच है। बहुतों को जिन्हे अपनी अंग्रेजी भाषा के ज्ञान पर दर्प है , वे कभी अंग्रेजी भाषाविदों के साथ बैठें तो पाएँगे कि वे ख़ामख़ाँ तुर्रम खां बन रहे थे , न उन्हें उस भाषा की सही तकनीक पता है न व्याकरण ज्ञान ही है। ऐसे लोग न घर के हैं न घाट के। यहाँ मेरा उद्देश्य किसी का तिरस्कार करना नहीं है। भाषा कोई भी हो , वह सदा पूजनीय होती है। उस पर पूर्ण अधिकार पाना एक जीवन में संभव नहीं है। और बिना पूर्णता के हम जानकार नहीं हो सकते। फिर इस तरह की झूठी शान और झूठे गर्व के लिए अपनी भाषा के साथ खिलवाड़ क्यों ? अंग्रेजी एक अतिथि भाषा है , उसे उतना ही सम्मान दें जो एक अतिथि को दिया जाता है। उसके लिए अपनों की अनदेखी क्यों ? कोई शक नहीं , इसका मुख्य कारण भारतीयों की आत्महीनता है। किसी ने जरा अंग्रेजी बोली नहीं कि समझ बैठे उसे विद्वान। अरे भाई ! पृथ्वी गोल हिन्दी में है तो अंग्रेजी में भी गोल ही है। भला ज्ञान का भाषा से क्या सम्बन्ध ? ज्ञान और भाषा दो जुदा शब्द हैं। हिन्दी से ये वैराग्य भाव भारतीयों के लिए कितना अहितकर है , सोचते ही डर लगता है।
किसी भी देश की पहचान उसके साहित्य से होती है। ये अमूल्य धरोहर होती है देश की संस्कृति की , विचारों की , अनुभवों की। जो पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजी जाती हैं , बड़ाई जाती हैं। परन्तु जब देश की भाषा ही पतन की ओर अग्रसर होगी तो नया साहित्य कैसे रचा जायेगा ? जो रचा जायेगा क्या वो सार्थक होगा ? हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए उन गंभीर , समर्पित रचनाकारों के प्रति , जिनके कारण आज भी चिंगारी के कण बिखरे दिखाई पड़ते हैं , जरुरत है उन चिंगारियों को भड़काने की , ताकि हिन्दी की लौ घर-घर,द्वार-द्वार जल सके।
विडंबना है कि भाषा भी अमीरी-गरीबी में बंट चुकी है। हिन्दी को दरिद्रों की और अंग्रेजी को अमीरों की भाषा कहने - समझने वाला ये देश अपनी ही जड़ों को खोखली कर रहा है। अगर हम हिन्दी को स्वयं सम्मान की दृष्टि से देखेंगे , अपनाएँगे , आत्मविश्वास के साथ बोलेंगे तो दुसरे लोग भी स्वयं सम्मान देने को विवश हो जाएँगे। कमी हमारे भीतर ही है जो हम अपनी ही भाषा को बोलने में झिझकते हैं।
और राज्यों का तो पता नहीं , परन्तु मध्य-प्रदेश की सामान्य हिन्दी की पुस्तकों में व्याकरण में न रस है , न छंद है , न अलंकार है , न शब्द-गुण या शब्द-शक्ति ही। जिस किसी कक्षा में है भी तो सिर्फ सामान्य परिचय भर। बताइये ऐसे में भला हिन्दी भाषा की दुर्गति नहीं होगी तो क्या होगा ? क्या इस तरह कोई विद्यार्थी एक सफल साहित्यकार बन पायेगा ? हम बड़ी-बड़ी बातें भले ही कर लें , परन्तु कोई ये बताये कि नई पीढ़ी शुद्ध व्याकरण वाली हिंदी कहाँ से सीखे ? अंग्रेजी माध्यमों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों से हम - आप क्या उम्मीद कर सकते हैं ? सरकारी विद्यालयों की स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। जो हिंदी भाषा के ज्ञाता हैं , वे भी अधिकांशतः लेखन आदि कार्यों से जुड़े हुए हैं। अनुभव आधारित आकलन रहा है कि आज के अधिकांश हिन्दी भाषा के शिक्षक भी शब्दों का सही उच्चारण , बिंदी का ज्ञान , तथा सतही व्याकरण ज्ञान भी नहीं रखते हैं। ऐसे में हिन्दी भाषा का भविष्य क्या होगा , बताने की जरुरत नहीं।
हालाँकि ‘ सोशल-साइट्स ‘ पर हिन्दी प्रचार-प्रसार की सुखद बयार दृष्टिगोचर हो रही है। अनेक युवा भी हिन्दी साहित्य की ओर अग्रसर हो रहे हैं , हिन्दी भाषा की उन्नति के लिए कार्य भी कर रहे हैं , परन्तु उसमें भी कई बार वर्तनी अशुद्धि सारी हदें पार कर जाती है। उनमें धैर्य और गंभीरता का अभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। कई बार उन्हें उचित मार्गदर्शक नहीं मिलते और कई बार वे स्वयं मार्गदर्शकों को अपने झूठे अहंकार के कारण दरकिनार कर देते है।
अंत में यही कहूँगी कि बहुत हुआ दिवसों का मानना - मनाना। यदि वास्तव में हिन्दी भाषा को उसका उचित स्थान दिलाना चाहते हैं तो शुरुआत स्वयं से करें। समय अवश्य लगेगा , परन्तु परिणाम भी सकारात्मक ही होंगे , हममें से कितने साहित्यकार हैं , जो अपने बच्चों को हिन्दी माध्यम से शिक्षा दिलवा रहे हैं ? बहुत ही विडंबनापूर्ण तथ्य है कि भारत के अतिरिक्त कोई देश नहीं , जहाँ बालकों की शिक्षा विशेषकर प्राथमिक शिक्षा विदेशी भाषा द्वारा होती है। बहुत ही गंभीर और विचारणीय है कि भारत के पास अनेकों अनेक भाषाएँ होते हुए भी उसे विदेशी भाषा की दरकार क्यों है ? अब वक्त है इसके बाज़ारीकरण को रोक उचित सम्मान देने की। आइये इस दिवस हम संकल्प करें कि वर्ष भर हिन्दी की उचित सेवा करेंगे , इसे हृदय से स्वीकारेंगे , मजबूरी से नहीं।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 741

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 4:40am
बहुत बढ़िया और सारगर्भित। इस हेतु हार्दिक आभार आपका।
Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 8:21pm
हार्दिक आभार आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी ।आपकी प्रतिक्रिया पाकर अति प्रसन्नता हुई ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 16, 2015 at 7:15pm

बेहतरीन और मारक लेख!..हिन्दी का भला तब तक नही होगा जब तक हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति में आवश्यक सुधारवादी कदम नहीं उठाये जाते!

Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 4:47pm
आदरणीय मदन मोहन जी हार्दिक आभार व धन्यवाद । आपकी प्रतिक्रिया से हार्दिक प्रसन्नता हुई । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 4:46pm
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आदरणीय गोपाल नारायण जी । सदा ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 4:44pm
आदरणीय कांता जी हार्दिक आभार एवं धन्यवाद सदा सहयोग देने और प्रोत्साहित करने हेतु ।
Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 4:43pm
आद0 गणेश जी बागी जी पूर्णतः सहमत हूँ । सुधार की ओर ध्यानाकर्षण करने हेतु सादर धन्यवाद । आपकी प्रतिक्रिया पाकर हार्दिक प्रसन्नता हुई । सादर ।
Comment by Madan Mohan saxena on September 16, 2015 at 10:31am

सुंदर और सार्थक

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:24am

हिन्दी के प्रति आपके उत्कट प्रेम को प्रणाम .

Comment by kanta roy on September 16, 2015 at 12:20am

बहुत ही सुंदर और सार्थक लेख हुई है आपकी ये हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में । बधाई आपको आदरणीया शशि बंसल जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service