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बेटे के पास विलायत गए दीवान जी को पोते पोतियों की चाल ढाल अच्छी नही लग रही थी | उनका रातों को देर से आना, बेढंगे कपड़े पहनना, घर पर ही दोस्तों के साथ मदिरा का सेवन आदि उनको बिलकुल भी बर्दास्त नही हो रहा था |
एक दिन घर पर पार्टी चल रही थी | डीजे के तीव्र संगीत के साथ जम के मदिरापान करते लड़के-लड़कियों का हुल्लड़ करना उनको रास ना आया और उन्होंने बेटे से कह डाला कि, " ये सब क्या है विमल ? "
"बाबू जी नई पीढ़ी है | "
"नई पीढ़ी है तो क्या इस तरह..... ? "
"ये अपनी तरह से जीना चाहते है, इनसे ज़ोर ज़बरदस्ती नही कर सकते | इनकी सोच अलग है बाबू जी |"
"बेटा, कल ही मैं वापस जाना चाहता हूँ, यूँ अपने संस्कारों को दम घुटते नही देख सकता | "

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 25, 2015 at 12:10am
आद० ओमप्रकाश सर, आद० अर्चना दी, आद० गोपाल नारायण सर एवं आद० राजेश कुमारी जी कथा को आपने कीमती समय दिया एवं सुन्दर प्रतिक्रिया दिया इसके लिए मैं आप सभी का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ...

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Comment by rajesh kumari on August 23, 2015 at 10:46pm

अच्छा सार्थक सन्देश देती हुई लघु कथा हार्दिक बधाई नोहर सिंह जी .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2015 at 4:40pm

हमी  हवा देते है हमी बाद में रोते और पछताते हैं . किशोर मन को भटकने से बचाने का दायित्व हमारा है यदि नहीं तो खाक हम अनुभवी हैं

Comment by Archana Tripathi on August 19, 2015 at 7:48pm
बेहतरीन रचना आ नरेंद्र जी ।
Comment by Omprakash Kshatriya on August 19, 2015 at 7:39pm
आ नरेंद्र जी आप की लघुकथा पीढ़ी के अंतराल को बखूबी दर्शा गई ।
Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 19, 2015 at 3:57pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर आपका हार्दिक धन्यवाद कथा को सराहने एवं उत्साहवर्धन के लिए...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 19, 2015 at 11:24am

आदरणीय नोहर सिंह जी बढ़िया प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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