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ग़ज़ल- वहशतों का असर न हो जाये

वहशतों का असर न हो जाये
आदमी जानवर न हो जाये


शाम के धुंधलके डराने लगे हैं,
हमसे ओझल नगर न हो जाये


अपने रिश्तों को अपने तक रखना,
मीडिया को खबर न हो जाये


ग़म का पत्थर मुझे दबा देगा,
आपकी हाँ अगर न हो जाये...


आप झुक जाएंगी जवानी में,
टहनियों सी कमर हो जाये


आपका इन्तजार जहर बना,
“सब्र वहशत असर न हो जाये”

अपना दामन बचा के रखना,

आँधियों को खबर न हो जाये

मौलिक व अप्रकाशित


सूबे सिंह सुजान

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Comment

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Comment by सूबे सिंह सुजान on October 23, 2014 at 10:45pm

जी, हां न छूट गया था।

आपको पसंद ायी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 9, 2014 at 2:52pm

आप झुक जाएंगी जवानी में,
टहनियों सी कमर हो जाये..न छूट गया है 

आपका इन्तजार जहर बना...ग़ज़ल को गुनगुनाने में आनद आया आदरणीय पर इस पंक्ति में थोड़ी असुबिधा हो रही है ..आपकी इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

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