For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम दीपक

 

बंधन में मत बाँध सखी
उन भावों को
जो नित-नित
मानसपट पर चित्रित होते हैं –
स्वप्नों के छंद में बाँध सखी
उन छंदों को
जो पलकों पर पुलकित, अधरों पर बिम्बित होते हैं.

 

नयनों से ढुलके जो दो-चार बूँद सखी
अपने हिय के पत्र-पुष्प पर
टल-मल-टल
उनमें अपनी किरणों को पिरो देना
मेरी पीड़ा के होमकुण्ड में गंगाजल.

जब आग बुझे, कुछ राख उड़े
तम छाए सखी,
उस नीरव हाहाकार को तुम कुचल देना
स्वप्निल रातों में विधु का जब अट्टहास उठे
अपने हृदय के सघन वाष्प से ढँक देना.

अंतिम प्रहर में पल्लव-पुट पर आँसू बरसे
समाधि पर मेरे तुम धीरे से आना
जो दीप नहीं जला सकी हो जीवन में,
प्रिये, एक बार
बस एक बार,
समाधि पर मेरी यूँ ही जला देना.

.
(मौलिक तथा अप्रकाशित)

Views: 751

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on July 29, 2014 at 8:09am
सघन भावों से सजी बड़ी सुन्दर रचना हुई है आदरणीय.
रचना को पढ़ना सुखद लगा...आपको हार्दिक बधाई.
सादर
Comment by vijay nikore on July 27, 2014 at 5:41pm

इस बहुत ही सुन्दर भावमय रचना के लिए बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:51am
आदरणीया राजेश कुमारी जी,आपने मेरी रचना को पसंद किया,मुझे प्रोत्साहन मिला. हार्दिक आभार.सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:48am
आदरणीया सविता तथा आदरणीय चौहान जी, आप लोगों का हार्दिक आभार.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:46am
आदरणीय लाडीवाला जी, आपने इस रचना में मेरी पसंद की पंक्तियों का उल्लेख करके मुझे विशेष आनंद प्रदान किया. आपका हार्दिक आभार. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:42am
आदरणीय सौरभ जी, जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ आपकी प्रतिक्रिया की बहुत बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है.
//अपनी इस प्रस्तुति से आपने इस मंच को समृद्ध किया है आदरणीय// इससे बड़ा पुरस्कार और क्या हो सकता है मेरे लिए.
आपकी टिप्पणी में अधिकांशत: शब्दों की अपनी विशिष्ट व्यंजना होती है जिसके फलस्वरूप मूल रचना (जिसके संदर्भ में उन शब्दों को पिरोया गया हो) अपनी सभी कमियों को लेकर भी उज्ज्वलतर हो उठती हैं ठीक उसी तरह जैसे सुबह की धूप खिलने के साथ ही अंधेरे में सोयी वादियाँ जग जाती हैं. आपकी स्नेहिल और गहरी दृष्टि को नमन आदरणीय.सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:19am
आदरणीया वेदिका जी, आपने अपने हृदय की दृष्टि से मेरी रचना को देख. आपका हार्दिक आभार.सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:16am
भाई रामशिरोमणि जी, आपकी स्नेहल प्रतिक्रिया के लिए आभार.सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:15am
आदरणीय जीतेंद्र गीत जी, आपको मेरी रचना पसंद आयी...मुझे प्रोत्साहन मिला.हार्दिक आभार. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on July 24, 2014 at 3:12am
आदरणीय संतलाल करुण जी, आपका हार्दिक आभार.सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service