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प्रतीक्षा -- ( लघुकथा )

आज कल्पवास के आखरी दिन भी वो रोज की तरह पेड़ के नीचे बैठ चारो तरफ नजरें घुमा-घुमा कर किसी को ढूंड रही है जैसे किसी के आने की प्रतीक्षा हो उसे, पूरा दिन निकल गया शाम होने को है, सूर्य की प्रखर किरणें मद्धम पड़ चुकी हैं, पंक्षी अपने-अपने घोसलों में पहुँच गये हैं, बस् कुछ देर में ही दिन पूरी तरह रात्रि के आँचल में समा जाएगा पर अभी तक वो नही दिखा जिसका बर्षों से वो प्रतीक्षा कर रही है |
“वर्षों पहले इसी कुम्भ में कल्पवास के लिए छोड़ गया था ये कह कर की कल्पवास समाप्त होने पर आ के ले जाऊँगा पर आज भी नही आया..शायद अगले कल्पवास में उसे माँ की याद आ जाये..पर तब तक शायद मै ही ना रहूँ” कहते हुए उसकी आवाज काँप गई अपनी झुकी हुयी कमर के साथ किसी तरह अपनी लाठी के सहारे चलती हुई वो रात्रि के अंधेरे में विलीन हो गई |

मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 9:20pm

आदरणीय शिज्जू जी आदरणीय सत्यनारायण जी .. बहुत बहुत आभार आप दोनों का | सादर 

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 9:19pm

जी आदरणीय कुशवाहा सर .................सादर आभार 

Comment by Satyanarayan Singh on May 9, 2014 at 4:36pm

 मर्मस्पर्शी सत्य व्यक्त करती लघु कथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया मीना पाठक जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 8, 2014 at 11:01pm

पता नहीं बच्चों का दिल इतना कठोर कैसे हो जाता है, हृदयस्पर्शी लघुकथा बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 7, 2014 at 10:35pm

आदरणीया मीना जी 

सादर 

ऐसे कितने माता पिता हैं जो अपना सर्वस्व देने के उपरान्त भी आज तक प्रतीक्षा रत हैं. शायद ..?

हमारा कर्तव्य है कि हम इनके बीच जाएँ. ठीक है न. 

बधाई. 

Comment by Meena Pathak on May 7, 2014 at 10:19pm

प्रिय विन्दु बहुत बहुत आभार | सस्नेह 

Comment by Meena Pathak on May 7, 2014 at 10:19pm

आदरणीया प्राची जी, रचना पर आप की उपस्थिति और सराहना पा कर अत्यंत प्रशन्न हूँ ..आप की शुभकामनाएँ सर आँखों पर ,,, पर आप का 'सस्नेह' कहाँ गया , ढूंड रही हूँ | सादर 

Comment by Vindu Babu on May 6, 2014 at 5:04am

ओ!

आदरणीया मीना दी,कितनी मार्मिक बात कितने सलीके से कही है अपने...सच में बड़ी स्पर्शी है।

हार्दिक शुभकामनायें आपको

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 5, 2014 at 10:34pm

आदरणीया मीना जी 

कुम्भ कल्पवास की ओट में ऐसी बेधती सच्चाइयाँ.. उफ्फ आत्मा तक ये दर्द जाता है 

कैसे कोइ पुत्र अपनी वृद्धा माँ को ऐसे छोड़ सकता है...? और माँ की उम्मीद आज भी ऐसे पुत्र के इंतज़ार में ज़िंदा है..

बहुत मर्मस्पर्शी सार्थक लघु कथा आदरणीया 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Meena Pathak on May 2, 2014 at 12:18pm

रचना पर आप की उपस्थिति, सराहना और मार्गदर्शन, इन सब के लिए मै हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीय सौरभ सर | सादर 



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