For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?

हे विधि! क्यों आस पल में तूने तोड़ दी,
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक ममता की आस,कुछ स्वप्नों के छोर,
नवजीवन का संचार,एक श्वांसों की डोर।
हाय ! पल में तूने क्यों तोड़ दी?
हे नियति! क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक 'माँ' का संबोधन,सुनने को व्याकुल मन,
एक नन्हा-सा जीवन,एक नवल शिशु-तन।
आह ! तूने नन्हीं देह मरोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
गर्भ धारण की समस्त पीड़ा,जो मैंने सही,
हृदय की वो वेदना,जो अंतरतम में रही।
आह!प्रकृति ने मेरी साधना तोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
पल-पल पलता,मेरी देह में एक जीवन,
सृजन के रोमांच से,खिलता मेरा तन-मन।
उसके प्राण ले तूने मेरी जान क्यों छोड़ दी?
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
उसके जाने पर,छाती दूध की नदियाँ बहाती,
शिशु बिना स्तन-पान भला,मैं किसे कराती?
उसके संग मेरी साँस क्यों न तोड़ दी ?
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
उसकी मृत्यु पर रोते-रोते,मेरी आँखें न फूटीं,
उसे पुकारते-पुकारते मेरी,ये साँसें न छूटीं।
उसके साथ क्यों न मेरी जीवनरेखा सिकोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
उसके माथे को चूमकर,उसे अंक में भरना था,
उसे गले लगाकर,जी भर प्यार मुझे करना था।
उसके बिना जीने को क्यों मेरी जीवनधारा मोड़ दी।
हे नियति! क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

Views: 881

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on September 26, 2013 at 10:16pm

प्रिय प्राची जी,मेरी इस रचना के मर्म तक पहुँचने,उसे व्याख्यायित करने एवं मेरा मार्गदर्शन करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! एक माँ की पीड़ा को मैं लिपिबद्ध कर सकी,यह मेरी योग्यता नहीं अपितु माँ सरस्वती का शुभाशीष है और आप सभी सुधीजनों के प्रेरक शब्दों का प्रभाव।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 10:49am

प्रिय सावित्री जी 

गर्भस्थ शिशु के लिए जब माँ की कोख ही उसकी कब्रगाह बन जाए... कारण चाहे जो भी हो , यह वेदना माँ के लिए असह्य ही होती है.

माँ का सम्बन्ध तो शिशु से गर्भाधान के साथ ही जुड़ जाता है, और माँ उसे पल पल हर श्वांस के साथ अपने ही भीतर जीने लगती है.

इस दुःख पीड़ा, स्वप्नों की टूटन, को मार्मिकता से प्रस्तुत किया गया है.

आपकी अभिव्यक्तियों में शिल्प पर भी आप और ध्यान दें.. गीत विधा को आत्मसात करें व मात्रिकता निर्वहन पर ध्यान दें.

शुभकामनाएं 

Comment by Savitri Rathore on September 22, 2013 at 5:18pm

बसंत जी, रविकर जी, शालिनी जी,अरुण जी, रमेश जी,महिमा जी और डॉ आशुतोष जी,आप सभी के अमूल्य शब्दों हेतु मैं आभारी हूँ।एक माँ की पीड़ा व्यक्त करने में मेरी लेखनी सक्षम रही,मेरे लिए यही संतुष्टिजनक बात है।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 21, 2013 at 1:42pm

दिल को झकझोर देने वाले शसक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 8:39pm

बेहद मार्मिक प्रस्तुती आदरणीया  एक व्याकुल माँ की ममता की तड़प उद्वेलित कर गयी .....

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 20, 2013 at 4:48pm

वेदना भरी रचना मुझे झकझोर दी,

अपने जीवन की घटना यह,

एक बार फिर आंखे नम कर दी

याद आ गया फिर मुझे,

मेरे गोद का खालीपन,

जो ईश्वर ने वेदना कठोर दी ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 20, 2013 at 2:37pm

एक 'माँ' का संबोधन,सुनने को व्याकुल मन,
एक नन्हा-सा जीवन,एक नवल शिशु-तन।
आह ! तूने नन्हीं देह मरोड़ दी। .... उफ्फ उफ्फ आदरणीया महिमा जी झकझोर गई आपकी यह रचना इन पंक्तियों पर काफी देर तक ठहरा रह गया अथाह दर्द, शब्दकोष खाली पड़ा है शब्द नहीं मिल रहे आपकी इस रचना पर कहूँ भी तो क्या और किस तरह कहूँ.

Comment by shalini rastogi on September 20, 2013 at 12:06pm

इअश न करे की ऐसी वेदना किसी स्त्री को भोगनी पड़े .. मर्म को व्याकुल कर गई आपकी यह हृदास्पर्शी पंक्तियाँ !

Comment by रविकर on September 20, 2013 at 10:37am

मार्मिक-

व्यथित करती पंक्तियाँ-

शुभकामनायें आदरेया-

Comment by बसंत नेमा on September 20, 2013 at 10:14am

आदरणीया सबित्रि जी .ये  दर्द तो केबल  एक माँ के दिल से निकल सकता है .. आप के दिल से निकला ये दर्द सीधे स्रोता के दिल मे उतर गया ... बहुत सुन्दर भाव के साथ सुन्दर मर्म् स्पर्शी रचना ...ढेरो शुभकामनाये अनंत बधाई .....  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service