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वो बचपन की यादें,

वो सपनो सी यादें,
वो पतंगे उड़ाना,
वो नाव चलाना,
वो बारिश की बूँदें,
वो मिटटी की छीटें,
सपनो से प्यारी है,
अब भी वो यादें,
वो बचपन की यादें,
वो बचपन की यादें.....
वो माँ की लोरी,
वो पापा की डांट,
वो खेल में झगड़ना,
वो ठेले की चाट,
सपनों से प्यारी हैं,
अब भी वो यादें,
वो बचपन की यादें,
वो बचपन की यादें,
वो दोस्तों से गपशप,
साथ में चाय के कप,
वो तितली पकड़ने को,
परी सा उड़ना,
परी की कहानी सी प्यारी हैं,
वो बचपन की यादें,
वो बचपन की यादें,
समय ने बचपन छीना सा है,
सब कुछ बहुत भीना सा है,
ना है पतंगे,
ना है उमंगें,
न दोस्तों की गपशप,
न बारिश की छपछप,
सब कुछ बहुत अधूरा सा है,
सच बचपन बहुत सुनहरा सा है,
सबसे सलोनी हैं
वो बचपन की यादें,
हाँ वो यादें,
वो बचपन की यादें......

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2012 at 2:52pm

यदि यह कहूँ कि पूरे जीवन काल में "बचपन" गोल्डेन पीरियड होता है तो यह बड़ बोलापन न होगा, न कोई चिंता न फिक्र, हर पल मस्ती ...वोह ..कोई लौटा दे मेरे बीते हुए पल ....

बहुत ही सुन्दर रचना योग्यता जी , बधाई स्वीकार करे |

Comment by Yogyata Mishra on January 14, 2012 at 10:17am

thnx....

Comment by Abhinav Arun on January 13, 2012 at 9:29pm

मन के किसी कोने में अपने उस बचपन को बचाए रखने की ज़रूरत है | इस एहसास को बल मिला इस रचना को पढ़कर | आदरणीया योग्यता जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 13, 2012 at 6:29pm

काश.. 

’काश’ की बर्क से लिपटते ही कई हूक भरती, छटपटाती हुई भावनाएँ गोया चुपचाप आराम करने लगती हैं.

योग्यता जी आपकी रचना पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ.

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