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दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार

 

माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।
संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार ।। 

 

हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।
डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।

 

जीत हार के राग  में, उलझा जीवन गीत ।
दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।

 

कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।
जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।

 

मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।
हर कोशिश में जीत की, मुखरित होती आस ।।

 

निष्ठा पूर्वक जो करें ,  अविरल अथक प्रयास ।
मिले हार को फिर वहाँ, आजीवन बनवास ।।

 

जीत हार दो तीर हैं, जीवन के आधार ।
दो तीरों पर है बसा, सुख - दुख का संसार ।।

 

सुशील सरना / 16-1-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 18, 2025 at 9:04pm

आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 14, 2025 at 5:44pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.  

यह अवश्य है कि संप्रेषणीयता और प्रस्तुति के नजरिये से किन्हीं-किन्हीं दोहों में तनिक स्पषटता होनी चाहिए, यथा,  

माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।
संग जीत के हार पर, जीवन का शृंगार ।।   ......... हार पर या हार से ? 

  

जीत हार के सूत में, उलझा जीवन गीत ।  ......... सूत में या राग में .. क्योंकि गीत कभी सूत में नहीं उलझ सकता
दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।

  

निष्ठा पूर्वक जो करें, अविरल अथक प्रयास ।   ....  जो करें के स्थान पर जो करे व्याकरण सम्मत होगा.  
मिले हार को फिर वहाँ, आजीवन बनवास ।।

 

जीत हार दो तीर है, जीवन का आधार ।  ............  जीत-हार दो तीर हैं  जीवन के आधार
दो तीरों पर है बसा, सुख - दुख का संसार ।।

हार्दिक बधाइयाँ 

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