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यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'


१२२ १२२/ १२२/१२

जिन्हें भाव जग में खले दीप के
वही  कहते  आरे  चले  दीप के।१।
*
यहाँ बाँध  घन्टी  गले दीप के
तमस जी रहा है तले दीप के।२।
*
बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को
नहीं एक  हम  ही  छले  दीप के।३।
*
चले है तमस  यूँ  दिखा आँख जो
लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।
*
कहाँ कब जले घर नहीं है पता
इरादे  कहाँ  अब  भले  दीप के।५।
*
परायों से बढ़ आज अपनो से भय
न बाती ही  कालिख  मले दीप के।६।
*
कहीं फूट जाये तुम्हीं में किरण
चलो साथ दो पग जले दीप के।७।
*
तमस भी  'मुसाफिर'  दुआ दे उसे
कि आशीष जिसको फले दीप के।८।
*
****
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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