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1222 1222 122

कहूँ सच आपका कोई नहीं है
जहाँ में आश्ना कोई नहीं है

सबूतों बात ये कह दी अभी से
वो दुनिया में मिरा कोई नहीं है

ये सब माया उसी की जो छुपा है
सिवा उसके ख़ुदा कोई नहीं है

अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है
अभागा अन्यथा कोई नहीं हैं

किया जो ज़ुर्म उसने वो भरेगा
वो मेरा मुँहलगा कोई नहीं है

मुखौटा कब कोई पहना है मैंने
बहस ये मुद्दआ कोई नहीं है

जो है इनसान का क़ातिल बुरा है
वो मुज़रिम है भला कोई नहीं है

मैं शाइर हूँ यतीमों का वो 'चेतन'
भरोसा बस ख़ुदा कोई नहीं है

सज़ा मिलती कैसे मुझको वो यारों
"मुझे पहचानता कोई नहीं है"


प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 31, 2023 at 12:08pm

आदरणीय चेतन जी अच्छा प्रयास है...आदरणीय धामी जी से सहमत हूँ...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2023 at 10:00pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। 

सबूतों बात ये कह दी अभी से"" इस पंक्ति का भाव कुछ स्पष्ट नहीं हो सका है। 

अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है//इसे ऐसा करने से कुछ प्रभाव बढ़ेगा- अकेलापन सजा सबसे बड़ी है । सादर...

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