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मौन रहता सच सदा ही, आवाज झूठ ही करता है

कर्म दिखाता सच का चेहरा, झूठ भ्रम को पैदा करता है ||

 

प्रमाण देता झूठ सदा ही, खूब खोखले दावे करता है

परवाह ना सच को किसी बात की, वो तो हौंसले की उड़ान को भरता है ||

 

तकलीफ होती झूठ को हरदम, ना खुशी बर्दास्त ही करता है

आग लगाता कहीं ना कहीं, जब भी शोर वो करता है ||

 

सच सागर सी शक्ति का मालिक, सदा मर्यादा धारण करता है

गमगीन रहता तह हृदय से, नए मुकाम वो हासिल करता है ||

 

झूठ तो जलता अपनी आग में, सच शांति की आंहे भरता है

विनर्मता रहती वाणी में सच की, हृदय में सीधा उतरता है ||

 

कुछ अर्थ होता उसकी बात में, ना शोर-शराबा करता है

झूठ कहता अभिमान से, सच कभी ना डरता है ||

 

झुकना पड़ता झूठ को सदा ही जब सच सामना करता है

तर्क-वितर्क में सम्मान को खोता, आंखे भी नीची करता है ||

 

सच का दामन कभी ना छोड़ो, पैदा मकसद जीने का करता है

गले लगाता उसी को लेकिन, जो सरल मार्ग पर चलता है ||

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Samar kabeer on January 29, 2021 at 8:39pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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