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तीन क्षणिकाएँ (गणेश बाग़ी)

तीन क्षणिकाएँ ...

एक: पन्ने
कुछ पन्ने
अलग करने योग्य
जुड़ने चाहिए
बच्चों की कापियों में
ताकि ...


वो खेल सकें
राजा-मंत्री, चोर-सिपाही
उड़ा सकें
हवाई जहाज
चला सकें
कागज की नाव
बिना डर,
बगैर किसी
असुविधा के ।

***
दो : कोना
बचाकर रखता हूँ
एक छोटा-सा कोना
अपने दिल में ...

जब होता हूँ
मैं बेहद अकेला
बैठा लेता हूँ चुपके से
उसमें अपने बचपन को
और करता हूँ
ढेर सारी बातें
सुख की, दुख की ।

***

तीन : जमा-पूँजी
बड़े जतन से
सँजोयी थी
एक पिता ने
उम्र भर की
जमा-पूँजी
खिला-खिला कर बच्चों को
लेमनचूस....

बिटिया फेंक आयी
उसे लपेटकर
कैडबरी के रैपर में
वैलेंटाइन के रोज ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 14, 2020 at 4:52am

आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी , कहाँ अतीत से निकाल लाएं ये सुन्दर पंक्तियाँ ? यूं तो ये ख़जाने बहुतों के पास होते हैं , बस हर कोई यूं ही अतीत में जाता आता नहीं। भावपूर्ण क्षणिकाओं के बहुत बहुत बधाई , सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 12, 2020 at 6:31am

आ. भाई गणेष जी बागी सादर अभिवादन । अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं । हार्दिक बधाई ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 8, 2020 at 10:32am

आदरणीय समर साहब, प्रणाम, आपको क्षणिकाएँ अच्छी लगी, लेखन सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार । रचनाओं पर आपकी समीक्षात्मक टिप्पणियां मैं पढ़ लेता हूँ, किन्तु प्रतिउत्तर समय की अनुपलब्धता के कारण तुरंत न हो पा रहा है, आप कहेंगे कि रचना सृजन के लिए कैसे समय मिल जाता है ? जैसा मैं इशारा समझ भी पा रहा हूँ, तो साहब आपको तो अच्छी तरह पता है कि कुछ चीजे Natural Call की तरह होती हैं जो स्वतः हो जाती हैं. रचना सृजन प्रक्रिया भी कुछ वैसा ही है. सादर।

Comment by Samar kabeer on March 8, 2020 at 7:28am

जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब,बहुत अच्छी क्षणिकाएँ लिखीं आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

ये बहुत प्रसन्नता की बात है कि आजकल आपकी रचनाएँ एक के बाद एक पटल पर पढ़ने को मिल रही हैं,लेकिन आप उन पर आई हुई टिप्पणियों के जवाब नहीं दे रहे हैं,कृपया इस तरफ़ ध्यान दें ।

कृपया ध्यान दे...

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"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
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