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लोकतंत्र की करवट ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

नेता जी क्षेत्र का दौरा करके लौट रहे थे।
कुछ निराश , कुछ हताश। क्षेत्र वाले अपनी सुना रहे थे , नेता जी अपनी लगाए थे। नेता जी को कोई बात बनती नज़र नहीं आ रही थी।
" फिर आते हैं ", कह कर वापस हो लिए।
कार में बड़बड़ाते हुए निजी स्टाफ से बोले ," ये नहीं सुधरेंगे " . थोड़ा रुक कर फिर बोले ," हमारे सुधरने का इंतज़ार करेंगे " .

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on May 3, 2016 at 4:02am
आदरणीय शेख सहजाद उस्मानी जी , रचना को स्वीकृति प्रदान करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 2, 2016 at 9:07pm

नेता जी अभी कच्चे निकले वरना लछेदार बातों से जनता को लुभा ही लेते, वैसे जनता भी हवा का रुख भापने नहीं दे रही आजकल. बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on May 2, 2016 at 2:49pm
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥ सादर 
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 2, 2016 at 1:23pm
गंभीर संदेश वाहक रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।

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