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मैं दामिनी हूँ

आप की जैसी एक जिंदगानी हूँ
जीना था मुझे आप की तरह
रोज़ सवेरे उठकर ऑफिस जाना था
एक छोटा सा घर बनाना था।

किसीकी बहन तो थी ही
किसीकी जननी भी कहलानी थी
माँ मुझे जीना था।

आज जल गया मेरा सवेरा
टूट गये सारे अरमान मेरे
जा रही मैं इस दुनिया को छोड़ कर
मगर माँ मुझे जीना था
रोज़ सवेरे आप का पैर छूना था।

उजाड़ गयी दुनिया मेरी
पर एक ख्वाब मुझे बुनना था
मगर माँ मुझे जीना था।

कैसे कहूँ, जो अब मैं चली गयी
लोगों की दिल में चोट बनकर रह गयी
इस चोट को दुनिया वालों, खुरेदना मत
मैं जा रही, पर ख्याल आप की
माँ बहन का रखना।

जब भी लगे चोट उनको
तो मुझे याद कर लेना,
मैं दामिनी हूँ-
लोगों, मुझे दिल में बसाए रखना,
मैं आज जो जीत गयी
ये जीत आप की बहन बेटी की होगी
मुझे जीत जाने दो
मुझे जीने दो।

माँ मुझे जीना था।

....Lata Tej.....
९/१३/१३

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 22, 2013 at 9:42am

दामिनी टो मरकर भी जीवित है, पर अब कोई और अबला पर यह कहर ना टूटे | समाज में सभी को प्रभु सद्बुद्धि दे 

सुन्दर भाव रचना के लिए बधाई आदरणीया लता तेज जी 

Comment by Lata tejeswar on November 21, 2013 at 10:34am

Dhanyabaad गीतिका 'वेदिका' ji aap ki sujhav bahut hi sarahniya hai ... koshish karungi ki aap ki salah par khari utarsakun

Comment by वेदिका on October 8, 2013 at 5:47pm

भाव पक्ष: मजबूत और संवेदनशील कथ्य

शिल्प पक्ष: संवेदना के साथ सरसता भी चाहिए|

नेक विषय पर कलम चलाने हेतु बधाई !!

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 1:08pm

 धन्यबाद  Baidya Nath 'सारथी' ji sadar

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 1:07pm

  Dr.Prachi Singhji aap ki अधूरी कहानी को पूरा कीजिये..... बहुत ही सुन्दर कहानी है ...और इस कहानी को अरुन शर्मा 'अनन्तji, annapurna bajpaiji, जिस तरह से आगे बढ़ाया है काबिले तारीफ है… बहुत बहुत बधाई ..अरुन शर्मा 'अनन्तji, annapurna bajpaiji,

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 12:56pm

बृजेश नीरज ji, Dr.Prachi Singh ji, माफ़ी चाहूंगी, मैं स्वतः हिंदी न होने हेतु व्याकरण में त्रुटियाँ दिखाई देती है , जैसे की मैं यहाँ आप जैसी महान साहित्य रचना कारों से कुछ ज्ञान प्राप्त करने आई हूँ,  इसलिए इन त्रुटीयों को माफ़ करते हुए मुझे मेरी गलतियों का एहसास देने हेतु बहुत बहुत आभार हूँ। आगे भी स्नेह बने रखे। सादर।

Comment by Lata tejeswar on October 8, 2013 at 12:51pm

 आदरणीय  Laxman Prasad Ladiwala ji, annapurna bajpaiji, अरुन शर्मा 'अनन्तji, जितेन्द्र 'गीत'ji, Abhinav Arunji, बृजेश नीरज ji, Dr.Prachi Singh ji रचना को सरहाने के हेतु बहुत बहुत धन्यबाद...कुछ दिन से मेरी अनुपस्थिति के कारण उत्तर प्रत्युत्तर में देरी हुई इस हेतु माफ़ी चाहूंगी। सबकी आशीष और स्नेह के बनी रहे, सादर .

Comment by Saarthi Baidyanath on October 8, 2013 at 12:45pm

संवेदनात्मक अभिव्यक्ति ... बढ़िया ::)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 17, 2013 at 11:54am

ज़िंदगी की आस लगाए कोई और दामिनी दम ना तोड़ दे... इस पीढा को चिंता को अभिव्यक्त करती मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएँ 

कुछ व्याकरण व टंकण त्रुटियाँ रह गयी हैं..उन्हें सही कर लें 

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 8:21pm

दामिनी के दर्द कहाँ भुलाया जा सकता है. ये ऐसी चोट है समाज पर जिसकी तीस बरसों तक बनी रहेगी.

दामिनी की पीड़ा को बहुत अच्छे से सब्द मिले हैं. आपको हार्दिक बधाई.

एक निवेदन जरूर करना चाहूँगा. ये मेरे विचार हैं, हो सकता है की आप सहमत न हों. लेकिन कविता करते समय अपनी भावनाओं के प्रवाह को नियंत्रित कर उन्हें शब्दों में पिरोना ही कवी या रचनाकार की कला है. आपकी ये रचना कविता कम एक स्टेटमेंट अधिक हो गयी है.

खैर, उस पीड़ा को शब्द देने के लिए आपको एक बार फिर बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

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