For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"श्याम-रत्न-धन" (संस्मरण) :

कुछ वर्ष पूर्व की बात है। लम्बी गंभीर बीमारी के बाद मेरी अम्मीजान का इंतकाल हो गया था। पूरे संयुक्त परिवार के साथ मैं भी बहुत दुखी था। मुझे सबसे ज़्यादा चाहने और मेरे भविष्य की सबसे ज़्यादा फ़िक्र और देखभाल करने वाली मेरी मां के चले जाने पर मुझे अहसास हुआ कि स्वयं उनको बहुत चाहते हुए और उनकी चिंता करते हुए भी मैं उनकी न तो समुचित देखभाल कर पाया था और न ही उनकी अपेक्षित सेवा। हां, उनके इंतकाल के बाद सब कुछ याद करते हुए उनके प्रति प्यार इतना ज़्यादा बढ़ गया था कि शुरुआत में हफ़्ते में दो बार  फूल/इत्र/अगरबत्ती में से कुछ न कुछ लेकर सात किलोमीटर दूर उनकी क़ब्र पर जाया करता था क़ब्रिस्तान में; महाविद्यालयीन शिक्षा के समय की सामान्य हीरो-साइकल से; क्योंकि स्कूटर या मोटर साइकिल चलाना आता नहीं था।  पास के हैंडपंप से पानी भरकर अम्मीजान की क़ब्र और उनकी पड़ोसी क़ब्रों के आसपास के दरख़्तों और झाड़ियों में पानी सींचा करता था। कभी-कभी क़ब्रिस्तान की देखभाल और चौकीदारी करने वाले बुज़ुर्ग चच्चाजान को पचास या सौ रुपये दे आया करता था। अब इसी रूप में मां के प्रति मुहब्बत और ख़िदमत सम्प्रेषित हो रही थी। हालांकि घर पर क़ुरआन-मजीद-पाठ कर उनकी रूह के लिए दुआएं करना ही काफी था। ख़ैर, अशासकीय विद्यालय में अध्यापन और आकाशवाणी के शिवपुरी केंद्र में नैमित्तिक रेडियो उद्घोषक का काम करते हुए यह गतिविधि शनै:-शनै: कम होकर हफ़्ते में एक बार, फ़िर माह में एक बार और फ़िर साल में एक बार यानि ई़द तक सिमट कर रह गई।
फ़िर कुछ ऐसा संयोग हुआ कि मेरे छोटे भाई के मित्र अमित की पत्नी जब उसे व मुझे भी हमारे घर  हर बार की तरह रक्षाबंधन पर राखी बांधने आई और फ़िर जब  मैं अपने परिवार के साथ उनके घर गया, तो मालूम हुआ कि कोई मणि नाम की युवती की माता जी गंभीर रूप से कुछ सालों से बीमारी के कारण बिस्तर पर पड़ी हुई हैं। रिटायर्ड विधवा संगीत शिक्षिका की जवान बेटी अपनी मां की सेवा अकेले ही कर रही थी। उसका इकलौता भाई इंदौर में उच्च शिक्षा हासिल कर मां के सपने पूरे करने की कोशिश कर रहा था और बहिन उसकी पढ़ाई में किसी भी तरह की बाधा न आने देने के संकल्प के साथ अकेले ही मां की सेवा कर रही थी।
मेरे मन में फ़िर से ममता तीव्र हुई। एक दिन स्कूल से घर लौटने के बजाय मैं सीधे मणि के घर पहुंचा। अपना परिचय दिया। उसकी मां का हालचाल जाना। बीमारी के तमाम लक्षण मेरी अम्मीजान जैसे ही थे। हम दोनों ने अपने अनुभव साझा किए। 
"आप अभी स्कूल से ही लौटे हैं। भूख लग रही होगी। आप मम्मा के पास बैठो, मैं खाना परोसती हूं।  दूसरे धर्म की अकेली युवती के घर में यूं भोजन करने से मैं मना कर सकता था, किंतु नहीं कर पाया क्योंकि उसकी मम्मी की मेडिकल रिपोर्ट्स और 'बेडरिडन-अवस्था' देख कर मुझे रह-रहकर अपनी अम्मीजान की याद आ रही थी। मैंने मणि की माता जी को सहारा देकर व्हील चेयर पर बिठाना चाहा। लेकिन उनका लम्बा क़द और भारी शरीर था। बीच में ही मणि आ गईं। अकेले उसी ने अपनी मां को उठाया और व्हील चेयर पर बिठा कर मेरे कहे अनुसार घर के पूजा वाले कमरे में ले गई। फ़िर हम दोनों उन्हें बालकनी तक ले गए। अब खाना परोसा जा चुका था। मैंने कुछ अलग ही तरह के स्नेह भरे स्वाद वाला भोजन सम्पन्न किया। लस्सी भी पी। फिर माता जी को वापस उनके बिस्तर पर लिटा कर मैंने वहां से विदा ली, यह कहकर कि फिर आता रहूंगा।
"बिल्कुल भैया आते रहिएगा। आपने इतना समय दिया मम्मा को। इतना तो ख़ास रिश्तेदार भी नहीं करते।" इन शब्दों से भी मुझे अपनी अम्मीजान वाले हालात याद आ गये। ख़ैर, कुछ दिन यूं ही मणि के घर जाता रहा। एक दिन उसने बताया कि कुछ बच्चों को वह संगीत की ट्यूशन भी देती है।  मकान की दूसरी मंज़िल पर वह मां के साथ रहती है और नीचे कुछ किरायेदार रहते हैं। नीचे दो गाय भी उसने पाल रखीं हैं। उनकी सेवा भी वह अकेले करती थी। उच्च शिक्षित होते हुए भी उसे आयुर्वेद पर अधिक भरोसा था। गाय को ऊपर वाली मंज़िल तक ले जाकर वह कुछ मान्य गतिविधियां भी करती थी मां के इलाज़ के लिए। न ख़ूबसूरत और न ही बदसूरत, श्यामवर्ण की औसत ऊंचाई की दुबली-पतली सी मणि इतना सब कैसे कर लेती थी, मुझे इसलिए आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि मैंने स्वयं कुर्सी में बैठे हुए वह सब सेवा देखी थी।
"आप शादी कर लीजिए और पति को भी यहीं रखियेगा।" मैंने मणि को सलाह दी थी।
"नहीं, शादीशुदा होने पर पति तो क्या मैं भी मम्मा की सेवा नहीं कर पाऊंगी। भैया को बहुत ऊंचाई पर पहुंचाना है। जब तक मां ज़िंदा हैं, न तो मैं और न ही मेरा भाई शादी  करेगा!" मणि का यह जवाब भी मुझे अपने पारिवारिक हालात और अम्मीजान की सेवा में आने वाली बाधाओं का स्मरण करा रहा था।
फ़िर कुछ ऐसा संयोग हुआ कि अपने ही विद्यालय के एक शिक्षक राजेश से ज्ञात हुआ कि मणि तो उसकी ख़ास रिश्तेदार है। तो फ़िर संकोच होने लगा मणि के घर जाने में। उसके और उसकी मां के सारे हालचाल मैं राजेश से ही पूछने लगा। फिर माह में एक बार मणि के घर जाता और फ़िर साल में एक बार। मैंने अपनी अम्मीजान के बेडरिडन-पेशेंट वाली कुछ पोशाकें भी मणि को दीं। उसने मेरी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें स्वीकार किया। एक बार जब मणि का भाई इंदौर से शिवपुरी आया, तो उसने मुझे फ़ोन कर बुलाया और अपने भाई से भी मिलवाया। बहुत यादगार मुलाक़ात रही।
फ़िर विद्यालयीन परीक्षाओं और पारिवारिक दायित्वों में उलझा रहा। एक दिन कुछ ऐसा संयोग हुआ कि राजेश से ही मुझे पता चला कि मणि की माता जी का देहावसान कुछ महीनों पहले हो चुका है। मुझे बहुत दुःख हुआ। उनके अंतिम संस्कार में जाने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी। दुख इस बात का भी था कि देहान्त के दिन ही न तो राजेश को न मणि को, न उसके भाई को और न ही मेरे भाई के दोस्त अमित को मुझे सूचना देने का समय मिल सका। लेकिन मैं मां की निस्वार्थ भाव से अद्भुत सेवा करने वाली सर्वधर्म समभाव वाली होनहार युवती के रूप में मणि को हमेशा याद रखूंगा।
(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 298

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
13 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
7 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
7 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service