For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की- हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,

२१२/ १२२२// २१२/ १२२२ 
.
हाँ! सराब का धोखा तिश्नगी में होता है,
ग़लतियों पे पछतावा आख़िरी में होता है.
.
तितलियों के पंखों पर चढ़ते हैं गुलों के रँग
ज़िक्र जब मुहब्बत का शाइरी में होता है.
.
शम्स ख़ुद भी छुपता है देख कर अँधेरे को,
इम्तिहान जुगनू का तीरगी में होता है.
.
बीज यादों के बो कर सींचता है अश्कों से
दिल ख़याल उगाता है जब नमी में होता है.
.
जिस ख़ुदा की ख़ातिर तुम लड़ रहे हो सदियों से
काश ये समझ पाते वो सभी में होता है.
.   
कागज़ों से उठती है संदली सी इक ख़ुशबू
नाम जब लिखा उन का डायरी में होता है.
.
मौत ही मुकम्मल है हश्र कुछ न जन्नत कुछ
ज़िन्दगी तमाशा है... ज़िन्दगी में होता है.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

दो पुछल्ले 
.

दुश्मनों के दिल जीते सत्य के जो आग्रह से  
शख्स कब कोई ऐसा हर सदी में होता है.
.  
छोड़िये सुनाएँ क्या क़िस्से उस बहादुर के,
शेर बन के फिरता है जब गली में होता है.

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2018 at 8:38am

धन्यवाद आ. राम अवध जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2018 at 8:38am

धन्यवाद आ. भाई सुरिंदर इन्सान जी 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on April 6, 2018 at 5:17am
आदर्णीय नीलेश जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकारें।
Comment by surender insan on April 5, 2018 at 8:36am

वाह वाह वाह वाह बेहतरीन ग़ज़ल हुई नीलेश भाई। बहुत बहुत मुबारक़बाद। सादर नमन।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 5, 2018 at 7:09am

धन्यवाद आ. समर सर,
आप की टिप्पणी से अभिभूत हूँ, आह्लादित हूँ .  
अच्छी ग़ज़ल कहने की मुझ में क्षमता होती तो हमेशा अच्छी ग़ज़ल कहता ...यदि आप को ग़ज़ल अच्छी लगी तो  यकीन मानिये कि ये काम किसी और ने मुझ से करवा लिया है. सब आपका और मंच के    गुणीजनों का आशीर्वाद है.
शम्स वाले शेर में एक बिम्ब है और रात के वक़्त जब सूर्य नहीं होता तो   रौशनी के प्रतीक स्वरूप   जुगनू का महिमामंडन मात्र है ..वर्तमान परिपेक्ष्य में  आशय यह है कि जिन पर ज़िम्मेदारी है, यदि वो नहीं निभाते हैं तो आम जन को अपना संघर्ष खुद करना   पड़ता है ..
.
पुछल्ले के दो अशआर में दो चरित्र दिखेंगे आप   को ...
पहले वाले का कद इतना ऊँचा है कि मैं उस पर शेर कहने   की हिमाक़त तो क्र सकता हूँ, ग़ज़ल नहीं कर   सकता..
और दूसरे वाले की हैसीयत नहीं है कि वो साहित्यिक रचना में जगह बना सके 
सादर 

Comment by Samar kabeer on April 4, 2018 at 10:00pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,आजकल एक के बाद एक शानदार ग़ज़लें हो रही हैं,लंच और डिनर में क्या ले रहे हो भाई ?

हमेशा की तरह ये ग़ज़ल भी ख़ूब हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'शम्स ख़ुद भी छुपता है देखकर अँधेरे को'

मैं इस मिसरे या इस बात से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ,क्योंकि मन्तिक़(तार्किकता) की दृष्टि से देखें तो अँधेरा शम्स के छुपने के तकरीबन पांच मिनट बाद आता है,यानी सूरज उसे देख नहीं पाता, इस बात पर ग़ौर कीजिये, या जो बात मैं नहीं समझ पाया,मुझे समझा दें ।

पुछल्ले की ज़रूरत तो मुशायरे में होती है,जब ग्यारह अशआर से ज़ियादा हों,लेकिन यहाँ इसकी क्या ज़रूरत,इन अशआर को ग़ज़ल में शामिल क्यों नहीं किया आपने?

पहले पुछल्ले के ऊला मिसरे में 'आग्रह' शब्द ग़ज़ल के मिज़ाज से मुताबिक़त नहीं रखता,शायद इसलिये ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 4, 2018 at 8:02pm

धन्यवाद आ. बसंत कुमार जी 
बहुत आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 4, 2018 at 8:01pm

धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 4, 2018 at 8:01pm

धन्यवाद आ. अजयजी,
आपके अनुमोदन से ग़ज़ल कहने का यत्न सफल हुआ 
आभार 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 5:53pm

वाह वाह क्या कहने आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service