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मोहब्बत की कोई जब भी यहाँ पर बात करता है
न जाने क्यों मेरा दिल ये उसी को याद करता है

किसी मंदिर मे जाऊं या किसी मज़्ज़िद मे जाऊं मैं
मेरा दिल बस उसे पाने की ही फ़रियाद करता है

कभी रांझा बनाता है कभी मजनू बनाता है
जहाँ मे इश्क़ लोगों को योहीं बर्बाद करता है

शिकायत बस यही बाकी रही दिल मे मेरे यारों
मोहब्बत ही नही करता जहाँ बस बात करता है

कभी कहना नहीं मासूम जग को हाल दिल का भी
कोई मायूस करता है तो बस हमराज़ करता है






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Comment by Pallav Pancholi on June 4, 2011 at 6:53pm
dhanywaad gurudev

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2011 at 12:02pm
वह वह पल्लव भाई क्या सुन्दर आशार कहे हैं - दिल से दाद देता हूँ  आपको !

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