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बुढापा जो बरपा है

अभी अभी मैं नींद से जागा हूँ,
नींद में मैंने सपना देखा,
सपने में एक बड़ा सा आइना देखा
आईने में खुद को निहारते देखा
देखते ही में लडखडाया
जल्द ही खुद को संभाल पाया
क्योकि
आईने में ख़ुद को जरुरत से ज्यादा बुढा पाया
बालो का वो सफेद रंग

मुझको बिलकुल नहीं  भाया
पर क्या करू?

हालात को झूठलातो नहीं सकता
बुढापा जो बरपा है


छुपा  तो नहीं सकता
खुदा ने दिया है

जीवन उसे जी भर कर तो जीना है
बुढे हुए ये सोच कर तो मरना है
मरने की सोच आते ही

मै नींद में भी डर गया
ख़ुद संभलते संभलते ही

लड़खड़ाके गिर गया
गिरते ही नींद खुल गयी
और उठा तो सीधे कंप्युटर पे गया
और अपना वो सपना

ब्लॊग पर लिख गया

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Comment by Ravindra Koshti on May 16, 2011 at 11:56pm
शुक्रिया सतिशजी!
Comment by satish mapatpuri on May 16, 2011 at 4:12pm

जीवन उसे जी भर कर तो जीना है
बुढे हुए ये सोच कर तो मरना है

बस यही ज़ज्बा बनाए रखना है रवीन्द्रजी. भावी से क्या डरना? अच्छी रचना के लिए धन्यवाद.

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