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(देवी सरस्वती वंदना) स्नेह का सागर अनन्तिम प्रेम हो सौहार्द्य हो

स्नेह का सागर अनन्तिम
प्रेम हो सौहार्द्य हो
कातर धरा पर गूँजता सा
तुम मनोहर काव्य हो

दान कर हमें ज्ञान की
तू सम्पदा
धीरज धरें आगे बढ़ें
हे मात देवी शारदा

मन में अटल विश्वास हो
हर पल नया उच्छ्वास हो
विपदा से चाहे हम घिरें हों
आप हरदम पास हों

किस तरह व्यापेगी
हम पर कोई आपदा
दान कर हमें ज्ञान की
तू सम्पदा
धीरज धरें आगे बढ़ें
हे मात देवी शारदा

सुन हे मुक्तिदायिनी
हे मातु वीणावादिनी
हंस सा निर्मल हृदय कर
शारदे हंस वाहिनी

हम पर दिखा अपनी कृपा
तू सर्वदा
दान कर हमें ज्ञान की
तू सम्पदा
धीरज धरें आगे बढ़ें
हे मातु देवी शारदा

मान का सम्मान का
चर-अचर संधान का
ज्ञान दे हे मातु हमको
अति जटिल विज्ञान का
तेरी शरण में हम पड़े
हे ज्ञानदा, हे ज्ञानदा
दान कर हमें ज्ञान की
तू सम्पदा
धीरज धरें आगे बढ़ें
हे मात देवी शारदा


मौलिक एवं अप्रकाशित

सादर,

सुधेन्दु ओझा

Views: 489

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 11:05am

आदरनीय सुधेन्दु ओझा भाई , सरस्वती वन्दना के भाव बहुत अच्छे लगे , आपको हृदय से बधाइयाँ । पर गेयता की कमी खल ज़रूर रही है ।

कृपया ध्यान दे...

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