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कुछ ही दिन पहले हुई पिता की मृत्यु से वह अभी उबर भी न पाया था कि अचानक शोक संतप्त माँ को दिल का भयंकर दौरा पड़ गयाI डॉक्टरों ने साफ़-साफ़ बता दिया था कि उसकी माँ अब ज़्यादा देर की मेहमान नहींI

कुछ ही समय पहले उसके पिता की गोलियों से छलनी लाश एक सुनसान क्षेत्र में पाई गई थीI पुलिस का कहना था कि यह आतंकवादियों का काम है, जबकि स्थानीय कट्टरपंथी इसे सेना द्वारा की गई फर्जी मुठभेड़ कह कर लगातार विष वमन कर रहे थेI शवयात्रा के दौरान पूरे रास्ते में देश और सेना विरोधी नारे लगते रहे थेI अपने पिता का शव देखकर बार-बार उसकी मुठ्ठियाँ तनीं थीं और आँखों से अंगारे बरसने को हो रहे थेI

कट्टरपंथियों ने उसके दिल में नफरत का ज़हर इस तरह दिया था कि अब वह पहले जैसा शांत स्वभाव नहीं रह गया थाI माँ से कभी कभार बात करना, अनजान लोगों से मुलाकातें करना और रात-रात भर से बाहर रहना उसकी दिनचर्या में शामिल हो चुका थाI विधवा माँ अपने इकलौते जवान बेटे का यह रूप देखकर किसी अनजाने भय से अन्दर तक काँप उठती थीI वह जब भी नौजवान लड़कों के सीमा पार जाकर आतंकवादी बनने या उनके मारे जाने की बातें सुनती तो उसका दिल धक से बैठ जाता, शायद इसी कारण उसे ह्रदयघात हुआ थाI 

वह अस्पताल के बिस्तर पर आखरी साँसे गिन रही माँ ने पास बैठा सुबक रहा थाI
"माँ...I" उसका गला बेहद भरा हुआ था I 
"मैं जा रही हूँ बेटा... दिल में बहुत से अरमान थेI ...  बस...बस... तुम अपना ख्याल रखना I" माँ की आँखों से अश्रुधारा बह निकलीI
"ऐसा मत कहो माँ, रुम्हें कुछ नही होगा.... पर मुझ से यूँ नाराज़ मत होI तू जो कहेगी मैं वही करूँगाI"
"तो मेरी एक बात मानेगा बेटा?" 
"हाँ माँ, तू हुक्म तो करI" माँ के आँसू पोंछते हुए उसने उत्तर दिया I 
"तो मेरे सर पर हाथ रख कर कसम खाI" बेटे का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रखते हुए माँ ने कहाI
"बोल माँ बोल, मैं तेरी कसम खाकर कहता हूँ कि जान दे कर भी अपना कौल निभाऊँगाI" 
उखड़ती हुई साँसों के कारण बहुत कठिनाई से, डूबते हुए स्वर में माँ बोली: 
"बेटाI वादा कर कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर तू अपनी इस ज़मीन को छोड़कर सरहद के उस पार कभी नहीं जाएगाI"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by मोहन बेगोवाल on December 8, 2015 at 7:11pm

 ऐसे दौर में बच्चों को भावुकता से बचाना अति जरुरी होता, बहुत सारे लोग ऐसे ही इन राहों पे चल पड़ते है, जहाँ अंत केवल अँधेरी गलियों में ही होता है , बहुत ही अर्थ भरपूर लघुकथा के लिए बधाई हो 

Comment by kanta roy on December 8, 2015 at 5:27pm
देश का बेटा ,अपनी जमीन के प्रति वफादार रहें , एक कौल में माँ ने गिरते हुए उम्मीदों के महल को फिर से खड़ा कर दिया ।

माँ के द्वारा अपने चरित्र में क्षीण होते बेटे का पुनः निर्माण करने की यहाँ बहुत ही शानदार भाव संप्रेषित हुआ है ।
लघुकथा का सकारात्मक अंत पाठकों के मन में ऊर्जा का संचार करती हुई उद्वेलित करती है जज्बे को , देश प्रेम समाहित किये अपने उद्देश्य में सफल होती यह सृजन नमनीय है ।
शत -शत नमन !

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