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तुम सोचना ये मत (गजल)

1222-1222-1222-1222

मुझे गम के समन्दर में अभी बहना नहीं आया ।

सभी यारो ने माना ये सच्च कहना नहीं आया ।।

 

मुझे कहते रहे कायर इश्क के सूरमां सारे ।

मगर हम मौन हो गए और कुछ कहना नही आया ।।

 

अरे! हम भी यहाँ उस बात का इजहार कर देते ।

मुझे गजलो में अपनी बात को कहना नहीं आया ।।

 

छन्द कहता गजल से ये इश्क उनको नहीं होता

अश्रू से गर जिन्हे दो आँख का धोना नहीं आया ।

 

चलो मैं मानता हूँ की मेरे आँसू नहीं होते ।

मगर तुम सोचना ये मत हमें रोना नही आया।

 "मौलिक व अप्रकाशित"           

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Comment by DIGVIJAY on November 29, 2015 at 4:41pm

जी ऐसी बात कतई नहीं हैं परन्तु दोबारा से प्रकाशन के लिए निवेदन करने से अच्छा मैं किसी नयी गजल के साथ मंच पर प्रस्तुत होऊँ । सादर ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 29, 2015 at 4:29pm

दिग्विजय जी !आपको कुछ सुझॉव दिये थे!आपके मेसेज बोक्स में!आपने उन पर ध्यान नहीं दिया!

Comment by DIGVIJAY on November 29, 2015 at 2:31pm

आदरणीय योगराज सर एवं तेजवीर सर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए धन्यवाद । मैं  अपने प्रयासो से निखार लाने कि सभी सम्भव कोशिश करूँगा बस आप लोग अपना आशिर्वाद मुझे सौंपते रहना । आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 29, 2015 at 2:25pm

अच्छा प्रयास है, लेकिन रचना अभी और बहुत सी मेहनत मांग रही है I मंच पर उपलब्ध ग़ज़ल विधा सम्बन्धी जानकारियों से लाभ उठायें भाई दिग्विजय जी I

Comment by DIGVIJAY on November 29, 2015 at 2:19pm

सभी माननीय सदस्यों मैं आप सभी को ये सूचित करना चाहता हूँ कि ये गजल जैसा जो कुछ भी हैं ये मेरी लेखनी का गजल के क्षेत्र में प्रथम प्रयास हैं । कृपया आप सभी मेरा उचित मार्गदर्शन करें ताकि मैं अपनी लेखनी में आवश्यक सुधार ला सकूँ ।

धन्यवाद ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 29, 2015 at 2:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय दिग्विजय जी!बेहतरीन गज़ल!

कृपया ध्यान दे...

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