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इसी तरह से ग़ज़ल हुई है -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

121-22---121-22---121-22---121-22

 

मेरी पुरानी जो वेदना थी वो आज थोड़ी सबल हुई है

ज़रा सी फिर आँख डबडबाई इसी तरह से ग़ज़ल हुई है

 

खुदा के अपने ये नेक बन्दे कभी किसी का बुरा न करते

बता खुशी भी क्यों जिंदगी से गरीब के बेदखल हुई हैं

 

लगी है कैसी अजीब आदत न वक़्त देखें न कोई मौका

किसी की पीड़ा जहाँ भी देखी ये आँख रह-रह सजल हुई है

 

किसी ने रोका, की मिन्नतें भी, बहुत बुलाया हमें किसी ने

हुआ पराजित ये गाँव फिर से नगर की कोशिश सफल हुई है

 

मिली अंधेरों में रौशनी फिर दिखी कहर में मुहब्बतें तो

जहाँ पे कीचड़ सना हुआ था वहीँ तमन्ना कँवल हुई है

 

ये ज़िन्दगी तो हज़ार मौकों से इस कदर यूं भरी हुई है

किसी ने मौका ज़रा भी समझा, ये जिंदगी फिर सरल हुई है

 

मुआवजें हो तमाम लेकिन वही खसारा, वही हकीकत

जमीं से फंदे उगे हज़ारों तबाह जब भी फसल हुई है   

 

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 9:14pm

आदरणीया प्रतिभा जी, ग़ज़ल के अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.

Comment by pratibha pande on September 5, 2015 at 5:01pm

बहुत खूबसूरत रचना आदरणीय मिथिलेश जी बधाई आपको 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:55am

आदरणीय समर कबीर जी, ग़ज़ल के अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.

"मिली अंधेरों में रौशनी फिर दिखी कहर में मुहब्बतें तो"
 इस मिसरे में 'कहर' का अर्थ आपदा, विपत्ति या संकट माना है. ये प्रयोग क्या गलत है, कृपया मार्गदर्शन निवेदित है.

 सही शब्द है 'दख़्ल','फ़स्ल' ..... सही कहा आपने आगे से ख़याल रखूंगा। सचेत करते मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आपका.  चूंकि इस बह्र में काफिया निर्धारण के हिसाब से इन्हें ठीक किया जाना संभव नहीं है इसलिए प्रचलित रूप ही रख रहा हूँ. सादर 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:44am

ये दाद पाकर किधर को जाएँ कि झूमते है इधर उधर हम 

मनोज भाई जो आप कह दे कमाल की ये ग़ज़ल हुई है


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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:35am

आदरणीय सौरभ सर, ग़ज़ल पर आपका  मुखर अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. ग़ज़ल की  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. नमन 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:33am

आदरणीय नीरज जी, ग़ज़ल के अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:33am

आदरणीय गुमनाम सर जी, ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.


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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:33am

आदरणीय जयनित जी ग़ज़ल के अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.


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Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:32am

आदरणीय मोहन बेगोवाल सर, ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन,  सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 4:31am

आदरणीया ज्योत्स्ना जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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